राष्ट्रधर्म-सम्बन्धी प्रेरक-प्रसंग
राष्ट्रधर्म-सम्बन्धी प्रेरक-प्रसंग [1] शंकराचार्यजीका राष्ट्रप्रेम सन् 1925 ई0 में ब्रिटेनके युवराज प्रिन्स ऑफ वेल्स भारत आये। ब्रिटिश सरकार चाहती थी
राष्ट्रधर्म-सम्बन्धी प्रेरक-प्रसंग [1] शंकराचार्यजीका राष्ट्रप्रेम सन् 1925 ई0 में ब्रिटेनके युवराज प्रिन्स ऑफ वेल्स भारत आये। ब्रिटिश सरकार चाहती थी
‘भगवती स्वर्णलेखा और गोदावरी सरिताके मध्यदेश – कलिङ्गकी प्रजाने विद्रोह कर दिया है, महाराज! यदि यह विद्रोह पूर्णरूपसे दबा नहीं
सन्त-स्वभाव एक वाटिकाके कोनेमें आमका विशाल छायादार वृक्ष खड़ा था। उसके नीचे ध्यानमग्न एक सन्त बैठे थे। गाँव के कुछ
गुजरातके धोलनगरके नरेश वीरधवल एक दिन भोजन करके पलंगपर लेटे थे और उनका सेवक राजाके पैर दबा रहा था। राजाने
गौरैयाका आग बुझाना बात त्रेतायुग — श्रीरामके समय की है। सुतीक्ष्ण ऋषिके आश्रम में बहुत-से ऋषि एक समूहमें साथ रहते
एक नरेशने अपने दरबारमें सामन्तोंसे पूछा- ‘मांस सस्ता है या महँगा ?’ सामन्तोंने उत्तर दिया- सस्ता है।’ सामन्तोंकी बात सुनकर
कोसलमें गाधि नामके एक बुद्धिमान् श्रोत्रिय, धर्मात्मा ब्राह्मण रहते थे। शास्त्रज्ञान और धर्माचरणका फल विषयोंसे वैराग्य न हो तो शास्त्रज्ञान
‘आत्मकल्याणके अधिकारी पापी, पुण्यात्मा सब हैं। अपने उद्धारकी बात प्रत्येक प्राणी सोच सकता है।’ अम्बपालीके मनमें आशाका संचार हुआ। ‘यान
गरमीके दिन थे, धूप तेज थी, पृथ्वी जल रही थी। महाराज भोजके राजकवि किसी आवश्यक कार्यको सम्पन्न करके नगरकी ओर
महाप्रभु यह सुनकर आश्चर्यचकित हो गये कि भगवद्-विग्रहके राजभोगके लिये द्रव्यका अभाव हो चला है। ‘सोनेकी कटोरी गिरवी रख दी