
जीर्णोद्धारका पुण्य
पहले गौडदेशमें वीरभद्र नामका एक अत्यन्त प्रसिद्ध राजा राज्य करता था। वह बड़ा प्रतापी, विद्वान् तथा धर्मात्मा था। उसकी पत्नीका
पहले गौडदेशमें वीरभद्र नामका एक अत्यन्त प्रसिद्ध राजा राज्य करता था। वह बड़ा प्रतापी, विद्वान् तथा धर्मात्मा था। उसकी पत्नीका
अभ्याससे सब कुछ सम्भव राजा भोज अपने मन्त्रीके साथ कहीं दूरकी यात्रा कर रहे थे। रास्तेमें उन्होंने एक किसानको ऊबड़
अनपढ़ होय, सो गये मकर संक्रान्तिके पर्वपर एक अनपढ़ दामाद अपनी ससुराल गया। उसका ससुर खेतपर चला गया था। इस
‘ऊधो! करमन की गति न्यारी’ (स्वामी श्रीशिवानन्दजी वैद्यराज) एक बहुत बड़ा सेठ विपुल सम्पत्ति छोड़कर मरा था। उसका एकमात्र पुत्र
अबु उस्मान हयरी नामक एक संत हो गये हैं। एक दिनकी बात है। रास्तेमें एक आदमीने कोयलेकी टोकरी इनके ऊपर
अक्लिष्टकर्मा राजराजेन्द्र, राघवेन्द्र श्रीरामभद्रकी राजसभा इन्द्र, यम और वरुणकी सभाके समकक्ष थी। उनके राज्यमें किसीको आधि-व्याधि या किसी प्रकारकी भी
एक सम्पन्न व्यक्ति बहुत ही उदार थे। अपने पास आये किसी भी दीन-दुखीको वे निराश नहीं लौटाते थे; परंतु उन्हें
(4) अनन्त इच्छाएँ ही ईशकृपामें बाधक एक फकीरके पास एक नौजवान शागिर्द (शिष्य) बननेके ख्यालसे उपस्थित हुआ। फकीर उसके साथ
तत्रैव गङ्गा यमुना च तत्र गोदावरी सिन्धुसरस्वती च । नद्यः समस्ता अप देवखातानमन्तियत्राच्युतसत्कथापराः॥ न कर्मलोपो न च बन्धलेशो न दुःखलेशो
सुख के माथे सिल परौ जो नाम हृदय से जाय। बलिहारी वा दुःख की जो पल-पल नाम रटाय ॥ महाभारतका