
सीख वाको दीजिये
‘सीख वाको दीजिये , (डॉ0 चक्षुप्रभाजी, एम0ए0, पी-एच0डी0) फाल्गुनका महीना चल रहा था। ठण्डी ठण्डी हवाके साथ धीमी-धीमी बूँदें भी
‘सीख वाको दीजिये , (डॉ0 चक्षुप्रभाजी, एम0ए0, पी-एच0डी0) फाल्गुनका महीना चल रहा था। ठण्डी ठण्डी हवाके साथ धीमी-धीमी बूँदें भी
पुरानी बात है- अयोध्यामें एक संत रहते थे, वे कहीं जा रहे थे। किसी बदमाशने उनके सिरपर लाठी मारकर उन्हें
सन् 1865 ई0 की बात है। बंगालमें भीषण अकाल पड़ा था। सभी लोग क्षुधासे व्याकुल होकर इधर-उधर भाग रहे थे।
नेपोलियन महान् सम्राट् होनेके अनन्तर एक महिलाके साथ पेरिसमें घूमने निकले थे। वे एक पतले रास्तेसे जा रहे थे। महिला
गुरुकी अवहेलनासे राक्षसयोनिकी प्राप्ति सत्ययुगमें एक ब्राह्मण थे, जिन्हें धर्म-कर्मका विशेष ज्ञान था। उनका नाम था सोमदत्त। वे सदा धर्मके
एक व्यक्ति शिकारके लिये जंगलमें गया। वहाँ उसने एक हरिनीको देखा। उसके साथ छोटा बच्चा था। शिकारी दौड़ा, हरिनी तो
मारवाड़के ही नहीं, समग्र भारतीय इतिहासमें दुर्गादास राठौड़का नाम अमर है। जिस समय औरंगजेबकी सारी कुचेष्टाओंको विफलकर वे कुमार अजीतसिंहकी
एक व्यापारीके दो पुत्र थे। एकका नाम था धर्मबुद्धि, दूसरेका दुष्टबुद्धि । वे दोनों एक बार व्यापार करने विदेश गये
महातपस्वी ब्राह्मण जाजलिने दीर्घकालतक श्रद्धा एवं नियमपूर्वक वानप्रस्थाश्रमधर्मका पालन किया था। अब वे केवल वायु पीकर निश्चल खड़े हो गये
दिया मैंने अपना जीवन दुखियोंके लिये ! उनतीस सालका एक नौजवान अपनी मैजपर फैले कागजपत्र समेट रहा था कि एक