सेवाभावी महात्मा टॉलस्टॉय
(11) सेवाभावी महात्मा टॉलस्टॉय ‘टॉलस्टॉय केवल एक प्रसिद्ध साहित्यकार ही नहीं वरन् एक उच्चकोटिके सन्त भी थे। एक बार वे
(11) सेवाभावी महात्मा टॉलस्टॉय ‘टॉलस्टॉय केवल एक प्रसिद्ध साहित्यकार ही नहीं वरन् एक उच्चकोटिके सन्त भी थे। एक बार वे
त्रावणकोर राज्यके तोरूर ग्राममें एक साहूकारका हाथी किसी कारणसे उन्मत्त हो उठा। उसने अपने महावत नारायण नायरको सूँड़से पकड़कर पृथ्वीपर
मिट्टीका घड़ा योगिराज भर्तृहरिका नाम योग, विज्ञान एवं वैराग्यका ज्वलन्त प्रतीक है। क्षिप्रा नदीकी समीपवर्तिनी आनन्दमयी सरस भूमि उज्जयिनीमें महाराज
वर्षाके दिन थे, वृष्टि प्रारम्भ हो गयी थी। आयोद धौम्य ऋषिने अपने शिष्य आरुणिको आदेश दिया ‘जाकर धानके खेतकी मेड़
जर्मनमा द्वितीय जोसेफ बहुत दयालु हृदयके पुरुष थे। वे अक्सर साधारण कपड़े पहनकर प्रजाकी हालत जाननेके लिये अकेले ही निकल
एक साधु थे। उनका जीवन इतना पवित्र तथा सदाचारपूर्ण था कि दिव्य आत्माएँ तथा देवदूत उनके दर्शनके लिये प्रायः आते
‘छाँड़ बिरानी आस’ (पात्र – किसान, किसानका बड़ा लड़का लखन, छोटा लड़का किशुन, चिड़ियाका जोड़ा और उसके दो बच्चे।) किसान-
रविशंकर महाराज एक गाँवमें सवा सौ मन गुड़ बाँट रहे थे। एक लड़कीको वे जब गुड़ देने लगे, तब उसने
एक संत किसी प्रसिद्ध तीर्थस्थानपर गये थे। वहाँ एक दिन वे तीर्थ स्नान करके रातको मन्दिरके पास सोये थे। उन्होंने
एक शराबीको नशेमें चूर लड़खड़ाते पैर चलते देखकर संत हुसेनने कहा- ‘भैया! पैर सँभाल-सँभालकर रखो, नहीं तो गिर जाओगे।’ शराबीने