
भट्टजीकी जाँघोंपर भगवान्
वृन्दावनमें श्रीभट्ट नामक एक महात्मा रहते थे। लोगों का कहना था कि उनकी दोनों जाँघोंपर श्रीराधा कृष्ण आकर बैठा करते
वृन्दावनमें श्रीभट्ट नामक एक महात्मा रहते थे। लोगों का कहना था कि उनकी दोनों जाँघोंपर श्रीराधा कृष्ण आकर बैठा करते
महाराज सगरके साठ सहस्र पुत्र महर्षि कपिलका अपमान करके अपने ही अपराधसे भस्म हो गये थे। उनके उद्धारका केवल एक
अनपढ़ होय, सो गये मकर संक्रान्तिके पर्वपर एक अनपढ़ दामाद अपनी ससुराल गया। उसका ससुर खेतपर चला गया था। इस
और अमरा अदृश्य हो गया !..” ‘बचाओ, बचाओ’ वेदनाभरी पुकार सुनते ही दादू मियाँने लकड़ीका बोझा अलग रख दिया। घने
प्यालीमें सागर भरनेकी चाह यूनानी सन्त आगस्टिनस एक सुबह सागरके तटपर अकेले ही घूमने निकल पड़े। तबतक सूर्योदय हो गया
किसी राज्यमें वहाँका राजकुमार बड़ा लाड़ला था। वह एक दिन रास्तेमें एक लावण्यवती युवतीको देखकर मोहित हो गया। युवती एक
उस समय फ्रांस और ऑस्ट्रियामें युद्ध चल रहा था लॉटूर आवन फ्रांसकी ग्रेनेडियर सेनाका सैनिक था। वह छुट्टी लेकर अपने
कलकत्तेके सुप्रसिद्ध विद्वान् श्रीविश्वनाथ तर्कभूषण बीमार पड़े थे। चिकित्सकने उनकी परिचर्या करनेवालोंको आदेश दिया- ‘रोगीको एक बूँद भी जल नहीं