मौन ही व्याख्यान है
मौन ही व्याख्यान है एक लड़कीका पति आया है। वह अपने बराबरीके युवकोंके साथ बाहरवाले कमरेमें बैठा है। इधर वह
मौन ही व्याख्यान है एक लड़कीका पति आया है। वह अपने बराबरीके युवकोंके साथ बाहरवाले कमरेमें बैठा है। इधर वह
पाण्डवोंका वनवास-काल समाप्त हो गया। दुर्योधनने युद्धके बिना उन्हें पाँच गाँव भी देना स्वीकार नहीं किया। युद्ध अनिवार्य समझकर दोनों
बोधप्रदायक यक्ष-युधिष्ठिर संवाद द्यूतक्रीड़ामें दुर्योधनके हाथों अपना सर्वस्व गवानेके बाद पाण्डवोंको बारह वर्षका वनवास एवं एक वर्षका अज्ञातवास भोगनेको बाध्य
(2) इच्छाओंकी डोरसे ही बन्धन एक सूफी सन्त बाजारसे निकल रहे थे। साथमें शिष्योंका जमघट भी था। उन्होंने देखा कि
प्रसिद्ध संत श्रीतपसीबाबाजी महाराज बड़े घोर तपस्वी संत थे। जो भी रूखा सूखा मिल जाता, उसीसे पेट भर लेते और
उलटा नाम जपत जगु जाना। बालमीकि भए ब्रह्म समाना ॥ बहुत प्राचीन बात है, सङ्गदोषसे एक ब्राह्मण क्रूर डाकू बन
दो भाई राजपूत जवान ऊँटपर चढ़कर कमाईके लिये परदेश जा रहे थे। उन्हें दूरसे ही एक साधु दौड़ता । सामने
[ श्रीराधा-कृष्ण-परिणय ] नित्य आनन्दघन, नित्यनिकुञ्जविहारी श्रीनन्दनन्दन धरापर आविर्भूत हुए और उनके साथ ही पधारीं व्रजधरापर उनकी महाभावरूपा आनन्दशक्ति श्रीराधा
बादशाह अलाउद्दीनके दरबार में एक मंगोल सरदार था। बादशाह उसकी शूरता तथा ईमानदारीसे बहुत संतुष्ट थे; किंतु निरंकुश लोगोंकी समीपता
ईरानके न्यायनिष्ठ बादशाह नौशेरवाँ एक बार कहीं शिकारमें निकले थे। भोजन बनने लगा तो पता लगा कि नमक नहीं है।