
गाड़ीवालेका ज्ञान
एक बड़ा दानी राजा था, उसका नाम था जानश्रुति । उसने इस आशयसे कि लोग सब जगह मेरा ही अन्न

एक बड़ा दानी राजा था, उसका नाम था जानश्रुति । उसने इस आशयसे कि लोग सब जगह मेरा ही अन्न

सुप्रसिद्ध महान् देशभक्त क्रान्तिकारी तरुण वीर चन्द्रशेखर आजाद बड़े ही दृढ़प्रतिज्ञ थे। हर समय आपके गलेमें यज्ञोपवीत, जेबमें गीता और

बर्बरीक भीमसेनका पोता और उनके पुत्र घटोत्कचका पुत्र था। इसकी माता मौर्वी थी, जिसे शस्त्र, शास्त्र तथा बुद्धिद्वारा पराजितकर घटोत्कचने

एक बार देवर्षिके मनमें यह जाननेकी इच्छा हुई कि जगत्में सबसे महान् कौन है। उन्होंने सोचा कि चलूँ भगवान् के

मौन ही व्याख्यान है एक लड़कीका पति आया है। वह अपने बराबरीके युवकोंके साथ बाहरवाले कमरेमें बैठा है। इधर वह

पाण्डवोंका वनवास-काल समाप्त हो गया। दुर्योधनने युद्धके बिना उन्हें पाँच गाँव भी देना स्वीकार नहीं किया। युद्ध अनिवार्य समझकर दोनों

बोधप्रदायक यक्ष-युधिष्ठिर संवाद द्यूतक्रीड़ामें दुर्योधनके हाथों अपना सर्वस्व गवानेके बाद पाण्डवोंको बारह वर्षका वनवास एवं एक वर्षका अज्ञातवास भोगनेको बाध्य

(2) इच्छाओंकी डोरसे ही बन्धन एक सूफी सन्त बाजारसे निकल रहे थे। साथमें शिष्योंका जमघट भी था। उन्होंने देखा कि

प्रसिद्ध संत श्रीतपसीबाबाजी महाराज बड़े घोर तपस्वी संत थे। जो भी रूखा सूखा मिल जाता, उसीसे पेट भर लेते और

उलटा नाम जपत जगु जाना। बालमीकि भए ब्रह्म समाना ॥ बहुत प्राचीन बात है, सङ्गदोषसे एक ब्राह्मण क्रूर डाकू बन