रसोपासना – भाग-23 “भोजन कुञ्ज”- अद्भुत झाँकी
जहाँ प्रेम प्रकट हो जाता है…वहीं “माधुर्य” का प्रकटीकरण होता है । जहाँ ईश्वर भाव जाग्रत होता है… वहाँ “ऐश्वर्य”
जहाँ प्रेम प्रकट हो जाता है…वहीं “माधुर्य” का प्रकटीकरण होता है । जहाँ ईश्वर भाव जाग्रत होता है… वहाँ “ऐश्वर्य”
सब कुछ नया नया है यहाँ…निकुञ्ज में कुछ भी पुराना नही है । ये रसोपासना है… साधकों ! आप किसी
नित्य रास विहार है – यहाँ निकुञ्ज में… अनादिकाल से “युगल” मिल रहे हैं… एक क्षण का भी इनका वियोग
निकुञ्ज “रसालय” है… नही नही, रस का आलय यानि रस का घर नही है निकुञ्ज… अपितु आलय ही रस है…
सखियाँ कौन हैं ? श्रीराधामाधव की छाया हैं । दिन और रात की सन्धि में जैसे संध्या होती है… ऐसे
🙏श्यामसुन्दर मधुर से मधुरतम हैं… अद्भुत प्रेम के उपासक हैं । 🙏जैसे कोई साधक आराधना करता है भगवती की… ऐसे
ब्रह्म पूर्ण है… परात्पर पूर्ण है… पूर्ण ज्योति है… पूर्णानन्द है । फिर प्रश्न उठता है कि जब ब्रह्म हर
भावना का बड़ा महत्व है… अजी ! भावना का ही तो महत्व है । भावना कीजिये – कि आप निकुञ्ज
“युगल यश” को गाना ही अब जीवन का ध्येय बन गया है ! बाकी संसार में किसका यश गायें ?
! अन्तःकरण को रंग दो “निकुँजरस” में ! ..इससे क्या लाभ ? “मुझे प्रसन्नता है कि मेरे इस “रसोपासना” लिखने