रसोपासना – भाग-17 युगलचन्द्र की चकोरी सखियाँ


सखियाँ कौन हैं ? श्रीराधामाधव की छाया हैं ।

दिन और रात की सन्धि में जैसे संध्या होती है… ऐसे ही भोक्ता- भोग्य, प्रेयसी और प्रियतम की सन्धि में – सखियाँ हैं ।

एक शब्द का हमारे वृन्दावनीय सिद्धान्त में बड़ा प्रयोग होता है… “हिततत्व”…बड़ी गहन व्याख्या होती है इसकी… पर मैं आपको सहजता से समझाता हूँ… “हित” शब्द तो आप समझ ही गए होंगे ?

“हित” करना… यानि भला करना… अच्छा करना… दूसरे को सुख पहुँचाना… इसी भावना का नाम है “हित”…और यही भावना “हिततत्व” कहलाती है… हमारे रसोपासना में हित का अर्थ प्रेम किया जाता है… सही है… सच्ची भलाई तो प्रेम ही है… विचार करके देख लो ?

सारे धर्म, सारे सम्प्रदाय क्या “हित” करने की प्रेरणा नही देते ?

सखियाँ हिततत्व हैं…ये अद्भुत बात कही जाती है हमारे श्रीधाम वृन्दावन में… सबका हित… सबसे प्रेम !

सबसे प्रेम ? बात अटपटी है… पर सच्चाई यही है कि… युगल के सिवा और कोई है ही नही… अरे ! युगल जब तक हैं… हमारे अंदर या किसी के भी अंदर तभी तक वो माई बाप लोग लुगाई सब है… जब “युगल” निकल जाते हैं… तब आप उसे घर में रखना भी पसन्द नही करते… छूने से भी डरते हैं…।

इसलिये सच में हम “युगल” से ही प्रेम करते हैं… युगल यानि ब्रह्म और उसकी शक्ति… यही सर्वत्र व्याप्त हैं सब में हैं…।

हमें इधर-उधर न भटकते हुए, इधर-उधर से मेरा मतलब… शरीर आदि जो मिथ्या है उसमें न अटकते हुये… मूल तत्व को जानते हुये हमें चलना है… और मूल को समझकर उससे ही प्रेम करना है… यही “हिततत्व” है ।

सखियाँ यही हैं… सखी वह भाव है… जो इधर उधर अटकती नही है… उसका पूरा ध्यान अपने प्यारे युगल सरकार में ही रहता है… युगल का आनन्द ही इनका आनन्द है… इनकी अपनी कोई कामना नही है… क्यों कि कामना तो तब हो ना… जब इनके पास इनका अपना मन हो… इनका मन ही नही है… मन को इन्होंने युगल के चरणों में चढ़ा दिया है…

मैं भी क्या बोले जा रहा हूँ… .

अरे ! शुरू में ही तो मैंने कह दिया है कि “श्रीराधामाधव की छाया हैं सखियाँ”…अब छाया का अपना मन थोड़े ही होता है ।

रस – रंग- अनंग- पूर्ण प्यासी- प्यासी – प्यारी- प्यारी ये सखियाँ ..चकोरी के समान चारों ओर से युगल को घेरे रहती हैं…नही नही उनको कुछ नही चाहिये… बस युगल परस्पर प्रसन्न रहें… युगल को एकान्त चाहिये… तो ये एकान्त दे भी देती हैं ।

सखियाँ यानि हंसी… ये युगल के रूप माधुरी की मोती चुगती हैं…

अजी ! इतना समझो श्रीराधामाधव की इच्छा शक्ति ही सखियाँ हैं ।

प्रिया प्रियतम इनके ही आधीन हैं…

जैसे भक्ति मार्ग में कहा जाता है… भगवान भक्त के आधीन हैं… ऐसे ही इस रसोपासना में कहा जाता है… युगल, सखियों के आधीन हैं…और सखियाँ युगल के… उफ़ ! पता नही क्या है !

मैं भी बुद्धि के आधार पर निकुञ्ज लीला को समझाने की कोशिश करता हूँ… पर… .छोड़ो… ध्यान करो… आँखें बन्द करो… और निकुञ्ज में चलो… चलो !

“श्रृंगार चौकी” से सिहांसन पर विराजमान कराने के लिये सखियाँ युगल को लेकर चलीं हैं…और बड़े प्रेम से चँवर, पँखा ढुलाती हुयी जा रही हैं… प्रेम रस में मदमाते युगल झूमते हुए चल रहे हैं ।

नख शिख तक कैसे सजे हुए हैं आज युगल… श्रीजी का तो स्वयं श्याम सुन्दर ने ही श्रृंगार किया है… और श्याम सुन्दर का श्रीजी ने ।

सिर पर पीला पाग धारण किये हैं… उस पाग में सिर पेंच मणि का है… श्रीजी के मस्तक में चन्द्रिका है… जो जगमग कर रही है ।

दिव्य भव्य सिंहासन में सखियों ने लाकर विराजमान कराया… युगलवर बड़े ठसक से बैठे हैं ।

“आहा ! कैसी शोभा लग रही हैं ना, युगलवर की !”

…रंगदेवी ने निहार कर कहा ।

ललिता सखी ने एक बड़ा-सा दर्पण रख दिया है… मणि से सज्जित दर्पण है… श्रीजी अपने आपको देखती हैं… लाल जु अपनी पाग देखकर ठीक करते हैं…

सखियों ! यही युगल तो हमारे जीवनाराध्य है… और यही रूप सुधा का पान ही हमें जीवन प्रदान करता है… धन्य हैं हम ।

रंगदेवी बड़े भाव विव्हल होकर कह रही हैं ।

अजी रंगदेवी ! अब इनके रूप सौन्दर्य को ही निहारती रहेंगी… या इनको कुछ खिलाएंगी भी… देखो तो ! कैसो चन्द्र सो मुख कुम्हलाय गयो है… ओह ! चलो इनके लिये अब भोग लगाओ ।

ललिता सखी की बात सुनकर…रंगदेवी मुड़ीं पीछे… तो पीछे तो चित्रा सखी अपनी अष्ट सखियन के साथ भोग लेकर खड़ीं थीं ।

रंगदेवी प्रसन्न हुयीं… सुवर्ण की दो चौकी युगल के सामने रखी गयी… उसमें सुन्दर वस्त्र बिछाया गया… दूसरी सखी जल रखती हैं सुवर्ण के पात्र में… जल झारी लेकर इन्दुलेखा खड़ी हैं… वो पहले युगल का हाथ धुलवाती हैं… तीसरी सखी भोग की थाल रखती हैं… उस सुवर्ण की थाली में… सुन्दर-सुन्दर व्यंजन सजाकर लाईं हैं सुदेवी ।

मिष्ठान्न हैं… मेवा हैं… ऋतु के फल हैं… पकौड़ी हैं… नाना प्रकार के पकौड़ी हैं ..दही बड़े हैं… शीतल पेय हैं… .

हे युगलवर ! अब आप भोग लगाइये… रंगदेवी ने बड़े प्रेम से कहा ।

युगल सरकार थाली में देखते हैं…उस थाली में स्वयं का मुख भी दिख रहा है… और मुस्कुराते हुए श्याम सुन्दर एक मेवा उठाते हैं…श्रीजी के मुख में देते हैं…श्री जी मना करती हैं… और स्वयं एक पकौड़ी उठाकर श्याम सुन्दर के मुख में देना चाहती हैं… पर श्याम सुन्दर कहते हैं…प्यारी ! आप पहले प्रसादी बनाओ… तब ये आपका पुजारी इस भोग को स्वीकार करेगा ।

सखियाँ गदगद् होती हैं… श्याम सुन्दर के इस प्रेम को देखकर ।… श्रीजी जब मानती नही हैं… .तब श्याम सुन्दर सखियों से ही कहते हैं… आप लोग कहो ना अपनी स्वामिनी से… कि मुझे अपनी जूठन प्रसादी देकर ये धन्य करें !

प्यारी ! मैंने आपकी कितनी सेवा की है… ये वेणी गुँथी…और इतना ही नही पूरा नख से शिख तक मैंने ही सजाया है… इसलिये मेरी बात आपको माननी ही पड़ेगी…

जब श्याम सुन्दर की जिद्द देखी तब श्रीजी ने सकुचाकर श्याम सुन्दर के हाथों से पहला ग्रास लेना स्वीकार किया… पर अद्भुत हैं श्याम सुन्दर… ..प्रसादी लेने लगे श्री जी की ।

इस तरह सखियाँ आनन्दित हो उठती हैं ।

“श्रृंगार भोग” पूरा हुआ… सखियों ने युगल की प्रसादी मिल बाँट कर आनन्दित हो कर पाईँ ।

आहा ! कितना आनन्द आया युगल को भोग पवाते हुए… ये नयन तो अपलक ठहर से गए थे सखी !

रंगदेवी ने अपनी बात ललिता से कही ।

पर मुझे डर लग रहा है… ललिता सखी बोलीं रंगदेवी से ।

डर ? किस बात का डर ? ये युगल हैं… इनका कोई नाम भी ले… इनके रूप का मन में कोई एक क्षण को चिन्तन करे तो उसके सारे दुःख दूर हो जाते हैं… ये सुख देने वाले हैं…किस बात का डर ?

रंगदेवी ने कहा ।

रंगदेवी ! तुम समझीं नहीं… मुझे इस बात का डर है कि कहीं इन युगलवर को हमारी नजर न लग जाये… ..

क्यों कि भोग पाते हुए… हम निहार रहीं थीं इन्हें… और कितनी प्रसन्न थीं हम सखियाँ… और इनकी वो झाँकी ! उफ़ !

इसलिये जाओ… जल्दी से एक आरती सजाकर लाओ…

ललिता सखी ने कहा ।

बस उसी समय एक अत्यन्त सुन्दर सी सखी आरती लेकर आगयी… सखी ये नई थी…

आरती इसके हाथों में…

युगल ने इस सखी को देखा… श्रीजी ने ललिता सखी से पूछा… ये कौन है ? ये कौन सी सखी है ? इतनी सुन्दर ? हमने कभी नही देखी थी… ..।

तब ललिता सखी ने कहा… आप क्या पूछ रही हैं स्वामिनी जु ! ये सखी तो नित्य आपके साथ ही रहती है… ..

मेरे साथ ? श्रीजी विचार करने लगीं ।

तब हँसते हुए रंगदेवी ने कहा… ये “सुन्दरता की देवी” हैं… .सौन्दर्य ने ही आकार धारण किया है… सखी रूप में आरती करने की इच्छा प्रकट की है… ये सौन्दर्यता की देवी हैं ।

युगल सरकार ये सुनकर प्रसन्न हुए…

तब सौन्दर्यता की देवी, रत्नमय मणि दीपों से आरती करने लगीं ।

सखियाँ आरती गाती हैं… कुछ नाच रही हैं… कुछ वीणा इत्यादि बजा रही हैं… आहा ! कितनी दिव्य आरती हुयी है आज ।

🙏”आज नीकी बनी श्रीराधिका नागरी,
बृज युवती यूथ में रूप अरु चतुरई, शील श्रृंगार गुन सबनते आगरी !!
कमल दक्षिनभुजा बामभुज अंश सखी, गावत सरसमिली मधुरसुर रागरी!

🙏जय जय श्री राधे ! जय जय श्री राधे ! जय जय श्री राधे !

शेष “रस चर्चा” कल –

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩

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