
आत्मा का दिव्य प्रकाश
सृष्टि के विराट चक्र में युगों की यात्रा अब अपने अंतिमपड़ाव की ओर बढ़ रही है। सतयुग की निर्मलता,त्रेतायुगकी मर्यादा
सृष्टि के विराट चक्र में युगों की यात्रा अब अपने अंतिमपड़ाव की ओर बढ़ रही है। सतयुग की निर्मलता,त्रेतायुगकी मर्यादा
बुद्ध के पास एक आदमी आया। उसने कहा. जो नहीं कहा जा सकता, वही सुनने आया हूं। बुद्ध ने आंखें
श्री अयोध्या जी में एक उच्च कोटि के संत रहते थे, इन्हें रामायण का श्रवण करने का व्यसन था। जहां
ना जन्म हमारी मर्जी से होता है ना ही मृत्यु तो जन्म मृत्यु के बीच होने वाली व्यवस्था हमारी मर्जी
अल्बर्ट आइंस्टीन बड़ा गणितज्ञ था, लेकिन उसने विवाह जिससे किया, फ्रा आइंस्टीन से, वह एक कवि स्त्री थी। यह बड़ा
लुकमान के जीवन मे उल्लेख है कि एक आदमी को उसने भारत भेजा आयुर्वेद की शिक्षा के लिए और उससे
सृष्टि के विराट चक्र में युगों की यात्रा अब अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रही है। सतयुग की निर्मलता,
मुक्ति वही है जो जीवित रहते हुए मिले इच्छा के रहते प्राण चले जाए तो मृत्यु है और प्राणों की
ब्रह्मांड का दिव्य स्वरूप भगवान कृष्ण अर्जुन को कहते हैं न तो योग के द्वारा, न ही भौतिक नेत्रों से
भक्ति केवल एक साधना नहीं, बल्कि आत्मा का सबसे कोमल और गहन स्पंदन है। यह कोई रूढ़ि नहीं, बल्कि जीवन