आनंद से ऊपर उठना
हम जीवन में रस चाहते हैं रस हमारा स्वास्थ्य बनाता है रस हमारे जीवन का आधार स्तम्भ है। रस के
हम जीवन में रस चाहते हैं रस हमारा स्वास्थ्य बनाता है रस हमारे जीवन का आधार स्तम्भ है। रस के
तुम शरीर नहीं हो,शरीर को जानने वाले हो!तुम कर्मेन्द्रियाँ नहीं हो,कर्मेन्द्रियों को जानने वाले हो!तुम ज्ञानेन्द्रियाँ नहीं हो,ज्ञानेन्द्रियों को जानने
आत्मा का परम रूप परमात्मा है। स्वयं की चेतना की चरम अवस्था परमात्मा है। सर्वव्यापी अनाहत-नाद परमात्मा का संगीत है।
तुम्हारा जब नाता टूटता है, तभी तुम दुखी होते हो। बीमारी का अर्थ है कि इस प्रकृति से तुम्हारा नाता
शास्त्र कहते है कि अठारह दिनों के महाभारत युद्ध में उस समय की पुरुष जनसंख्या का 80% सफाया हो गया
आपके कृपा प्रसाद से जब आत्मानुभूति का सुन्दर प्रकाश फेलता है तो संसार के भेद रुप मोह का नाश हो
हमारा जीवन दूसरों से ज्यादा स्वयं की दृष्टि में श्रेष्ठ एवं पवित्र होना चाहिए। केवल किसी के बुरे कहने मात्र
1 सर्वज्ञ -ईश्वर में शुद्ध सतोगुण पाया जाता है इसलिए ईश्वर सर्वज्ञ है और जीव अल्पज्ञ है , जितना सतोगुण
जिसने भोगा ही नहीं है, वह त्याग कैसे करेगा? और जिसके पास है ही नहीं, वह छोड़ेगा कैसे? एक साधु
प्रकृति के उत्पन्न तीनों गुण आपके व हमारे शरीर से चाहे जितने भी निम्नकोटि के अथवा उच्चकोटि के पाप या