
जगत तत्व और आत्मविवेक की यात्रा
कभी-कभी यह भ्रम सहज रूप से मन में आता है कि जो जगत मुझे चारों ओर प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा

कभी-कभी यह भ्रम सहज रूप से मन में आता है कि जो जगत मुझे चारों ओर प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा

मनुष्य शरीर कर्म करने के लिए बना है। कर्म करना और फल की इच्छा न करना हीनिष्काम कर्म-योग यानि भक्ति-योग

मृत्यु यात्रा है आत्मा चोले का नव निर्माण करती है।आत्मा के लिए शरीर का बदलाव वस्त्र बदलने के समान है।

जैनों की तपस्या सबसे कठीन मानी जाती है , क्योंकि उसमे कुछ भी खाना नहीं होता या कुछ तपस्याओं में

मनुष्य शरीर कर्म करने के लिए बना है। कर्म की हम कितनी बाते करे कर्म को शुद्ध रूप से किये

हरि ॐ तत् सत् जय सच्चिदानंद तुम अकेले क्या कर सकते होसृष्टि हमेशा दो में होती है तुम्हारे भीतर शक्ति

आज का समय ऐसा है हर कोई अपनी आजादी और अपने सुख चाहता है। हम जीवन को समझते नहीं है।

एक राजा के मन में यह काल्पनिक भय बैठ गया कि शत्रु उसके महल पर आक्रमण कर उसकी हत्या कर

पूछा है कि हम कैसे हो जाएं कि परमात्मा प्रगट हो सके?एक छोटी सी कहानी अंत में कह देनी है।
भगवान राम को भगवान शंकर का उपदेश पद्मपुराण में १६ अध्यायों में भगवान् श्रीराम के प्रति भगवान् शंकर ने जो