ध्यान और ज्ञान के मार्ग बाहर से नहीं भीतर से प्राप्त होते हैं
ज्ञान कोई नहीं देता है। ज्ञान प्राप्त कर के क्या करोगे जीवन अर्पण करो तब कुछ हो एक एक सांस
ज्ञान कोई नहीं देता है। ज्ञान प्राप्त कर के क्या करोगे जीवन अर्पण करो तब कुछ हो एक एक सांस
।। जय भगवान श्री सूर्यनारायण ।। मानव के उद्भव से सम्बंधित उल्लेख श्रुति (वेद) में मिलता है। स्वर्गादि उच्च लोक,
अष्टावक्र इतने प्रकाण्ड विद्वान थे कि माँ के गर्भ से ही अपने पिताजी “कहोड़” को अशुद्ध वेद पाठ करने के
दिपावली पर मन मन्दिर सजाएंगे। हमारे मन की पवित्रता ही दिपावली है शान्ति ही अयोध्या नगरी है। हमे मन मन्दिर
‘हे भारत ! तू सर्वभाव से उस परमात्मा की शरण जा, उसकी कृपा से तू परम शान्ति को, अविनाशी स्थान
हमारा मन तङफ रहा है दिल भाव चाहता है भाव बनते नहीं है। हम खोज रहे हैं हमे खोज का
आज का भगवद चिंतन।इस शरीर पर जब जीव का अधिकार नहीं है तो संपत्ति और संतति पर कैसे हो सकता
! श्रीं हरि:!भगवान् कहते हैं – मैं ही अनेक रूप से हो गया । तो वासुदेव: सर्वम् । वास्तव में
परमेश्वर से मिलन मनुष्य-जन्म में ही संभव है परमात्मा ने सिर्फ इन्सान को ही यह हक़ दिया है यह मनुष्य-शरीर
साधक अपने अन्दर स्थिरता कैसे देखता है साधक हर क्षण चोकना रहता है वह अपने अन्तर्मन के भाव पढते हुए