अध्यात्मवाद (Adhyatmvad)

आनंद से ऊपर उठना

हम जीवन में रस चाहते हैं रस हमारा स्वास्थ्य बनाता है रस हमारे जीवन का आधार स्तम्भ है। रस के

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तुम शरीर नहीं हो

तुम शरीर नहीं हो,शरीर को जानने वाले हो!तुम कर्मेन्द्रियाँ नहीं हो,कर्मेन्द्रियों को जानने वाले हो!तुम ज्ञानेन्द्रियाँ नहीं हो,ज्ञानेन्द्रियों को जानने

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परमात्मा का स्वरूप

आत्मा का परम रूप परमात्मा है। स्वयं की चेतना की चरम अवस्था परमात्मा है। सर्वव्यापी अनाहत-नाद परमात्मा का संगीत है।

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सत्य ही परमात्मा है

तुम्हारा जब नाता टूटता है, तभी तुम दुखी होते हो। बीमारी का अर्थ है कि इस प्रकृति से तुम्हारा नाता

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स्वयं को बदले

हमारा जीवन दूसरों से ज्यादा स्वयं की दृष्टि में श्रेष्ठ एवं पवित्र होना चाहिए। केवल किसी के बुरे कहने मात्र

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ईश्वर के गुणधर्म

1 सर्वज्ञ -ईश्वर में शुद्ध सतोगुण पाया जाता है इसलिए ईश्वर सर्वज्ञ है और जीव अल्पज्ञ है , जितना सतोगुण

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