![](https://bhagvanbhakti.com/wp-content/uploads/2023/05/saffu-Ct1Mx5OTn9A-unsplash.jpg)
आत्मज्ञान और परमात्मज्ञान
आत्मज्ञान और परमात्मज्ञान एक ही है। कारण कि चिन्मयसत्ता एक ही है, पर जीव की उपाधि से अलग-अलग दीखती है।
आत्मज्ञान और परमात्मज्ञान एक ही है। कारण कि चिन्मयसत्ता एक ही है, पर जीव की उपाधि से अलग-अलग दीखती है।
चिंतन करो, कृष्ण का।चिंतन करो, आत्मा का परमात्मा से मिलन का चिंतन करो अपने को कर्त्ता न मानने का ।सब
एक चोर चोरी के इरादे से खिड़की की राह, एक घर में घुस रहा था। खिड़की की चौखट के टूटने
९ मार्च, १९३६ सोमवार, सायंकाल के पाँच बजने वाले थे। जगन्नाथपुरी के अपने आश्रम में ८१ वर्षीय स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरी
‘हे उद्धव! शंकर, ब्रम्हा, बलराम, लक्ष्मी और स्वंय अपना आत्मा भी मुझे उतना प्रिय नहीं है,जितने प्रियतम तुम हो!’ भगवान्
हरि ॐ तत् सत् जय सच्चिदानंद 🌹🙏 मनुष्य के तीन शरीर होते हैं।पहला आकार आकृति से रहित निरंकारफिर सुक्ष्म शरीरमन
स्वामी विवेकानंद रोज की तरह अपने पीतल के लोटे को मांज रहे थे। काफी देर तक लोटा मांजने के बाद
परम पिता परमात्मा को हम आंखों में बसा ले जिससे कुछ भी करते हुए प्रभु हमारे दिल में बैठे रहे
ध्यान में परमात्मा के चिन्तन के अलावा कुछ भी नहीं है। भगवान को हम शरीर रूप से भजते भगवान को
एक भक्त पृथ्वी माता से प्रार्थना करते मेरी अनजाने में पृथ्वी माता से रहती। हे पृथ्वी माता देख तुने मुझे