
राम सीता वन के भाव
बनवास में रहते हुए दस वर्ष हो चुके थे , इतने वर्ष घर से दूर रहने के कारण तीनों के
बनवास में रहते हुए दस वर्ष हो चुके थे , इतने वर्ष घर से दूर रहने के कारण तीनों के
एक दिन कान्हा जी छुपते छुपाते एक गोपी के घर में प्रवेश हुए। चारो तरफ माखन की मटकी ढुंढ रहे
सुबह का समय है। श्रीप्रिया-प्रियतम ने बालभोग आरोग लिया है।.मुख-प्रक्षालन करके श्रीप्रिया-प्रियतम ने ताम्बूल पा लिया है।.इसी समय श्री ललिता
जय गोपाल, नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपंलसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम् ।यशोदाभियोलूखलाद्धावमानंपरामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या ।।१।। रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तंकराम्भोज-युग्मेन सातंकनेत्रम्।मुहु:श्वास कम्प-त्रिरेखामकण्ठस्थित ग्रैव-दामोदरं भक्तिबद्धम् ।।२।। इतीदृक्
दोहा: निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करें सन्मान ।तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ।। भावार्थ:- जो भी
“गुप्त अकाम निरन्तर ध्यान सहित सानन्द ।आदर जुत जपसे तुरत पावत परमानन्द ॥“ ये छः बातें जिस जप में होती
राम शब्द में दो अर्थ व्यंजित हैं। सुखद होना और ठहर जाना जैसे अपने मार्ग से भटका हुआ कोई पथिक
काल हू को काल लोकपाल हू को पालनहारो,सबकौ नियंता सदा रहत सुतंत्र है ।ब्रह्मा सिव विष्णु सेष जोगी जन जतन
गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि जो निरंतर मेरी कथा और नाम स्मरण में प्रीति पूर्वक
आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने।आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते।। जो मनुष्य सूर्य नमस्कार प्रतिदिन करते है उनकी