राममय- भारत
आज भारतीय सभ्यता ने अपने पुनरुत्थान और प्रस्थान के लिए जिस चरित्र को चुना, वह राम हैं। ऐसा नहीं कि
आज भारतीय सभ्यता ने अपने पुनरुत्थान और प्रस्थान के लिए जिस चरित्र को चुना, वह राम हैं। ऐसा नहीं कि
एवमस्तु कहि रघुकुलनायक। बोले बचन परम सुखदायक॥सुनु बायस तैं सहज सयाना। काहे न मागसि अस बरदाना॥॥एवमस्तु’ (ऐसा ही हो) कहकर
।। नमो राघवाय ।। कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक।मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक।। ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा।उभय बेष
असि रघुपति लीला उरगारी। दनुज बिमोहनि जन सुखकारी॥जे मति मलिन बिषय बस कामी। प्रभु पर मोह धरहिं इमि स्वामी॥॥भावार्थ:-हे गरुड़जी!
दोहा प्रनतपाल रघुबंसमनि ,त्राहि त्राहि अब मोहि।आरत गिरा सुनत प्रभु ,अभय करेंगे तोहि॥20॥ भावार्थ, और ‘हे शरणागत के पालन करने
दोहा :गयउ सभा दरबार तब,सुमिरि राम पद कंज।सिंह ठवनि इत उत चितव,धीर बीर बल पुंज॥18॥ भावार्थ:- श्री रामजी के चरणकमलों
चौपाई : जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥ निज दुख गिरि सम रज करि जाना।मित्रक दुख
प्रातःअभिवादन,प्रणाम नमस्कार। मात-पिता चरण कमलेभ्योःनम।श्री गुरुचरण कमलेभ्योःनम ।राम राम। जय सीताराम।जयश्रीकृष्ण। बजरंग बली की जय।जय मां भवानी।हर हर महादेव।प्रातःवंदन ब्रह्म
गोस्वामी तुलसीदास जी ” नाम-नामी प्रकरण ” के अंतर्गत नाम एवं रूप की चर्चा करते हुए कहते हैं –को बड़
अयोध्या से बिदाई के समय अंगद के भगवान श्रीराम से विनय- सुनु सर्बग्य कृपा सुख सिंधो, दीन दयाकर आरत बंधो।।