
भरोसा भरत जी सा
हनुमान जी जब पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते है.प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था।आपने

हनुमान जी जब पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते है.प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था।आपने

जय भगवान राम रामकथा ससि किरन समाना।संत चकोर करहिं जेहि पाना।। ऐसेइ संसय कीन्ह भवानी।महादेव तब कहा बखानी।। भावार्थ:-श्री रामजी

ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि।। भावार्थ-इस प्रकार ‘राम’ नाम

।। श्रीरामचरितमानस- अयोध्याकाण्ड ।। चौपाई-नयनवंत रघुबरहि बिलोकी।पाइ जनम फल होहिं बिसोकी।। परसि चरन रज अचर सुखारी।भए परम पद के अधिकारी।।

श्रीरामचरितमानस- अयोध्याकाण्ड चौपाई-राम संग सिय रहति सुखारी।पुर परिजन गृह सुरति बिसारी।। छिनु छिनु पिय बिधु बदनु निहारी।प्रमुदित मनहुँ चकोर कुमारी।।

रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम॥जय रघुनन्दन जय घनशाम। पतित पावन सीताराम॥भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे। दूर करो प्रभु दु:ख

काशी में एक जगह पर तुलसीदास रोज रामचरित मानस को गाते थे वो जगह थी अस्सीघाट। उनकी कथा को बहुत
समर्थ गुरू राम दास जी संगत के समक्ष राम कथा कर रहे थे और हनुमान जी वेष बदल कर रोज

जब कोई मुख पूरा खोलकर जम्भाई लेता है और जम्भाई लेते समय भी यदि राम बोलता है तो उसके भीतर
भरत जी जब भरद्वाज मुनि के आश्रम में पधारे तो मुनि जी ने भरत जी और उनके समाज के स्वागत