
साधुताका परम आदर्श
सन् 1844 ई0 में कलकत्तेके संस्कृत कालेजमें एक व्याकरणाध्यापककी आवश्यकता हुई और प्रबन्ध समितिने ईश्वरचन्द्र विद्यासागरको वह पद दिया ।
सन् 1844 ई0 में कलकत्तेके संस्कृत कालेजमें एक व्याकरणाध्यापककी आवश्यकता हुई और प्रबन्ध समितिने ईश्वरचन्द्र विद्यासागरको वह पद दिया ।
जैनपुराणकी कथा है कि एक बार श्रीबलदेव, वासुदेव और सात्यकि—ये तीनों बिना किसी सेवक या सैनिकके वनमें भटक गये। बात
वृद्धका अनुभव एक राजाने अपने राज्यमें यह कानून लागू कर रखा था कि सत्तर वर्षकी आयु पूरी हो जानेपर प्रत्येक
एक बादशाह (सुल्तान)- को सच्चे आदमीकी बड़ी खोज थी। अन्य कर्मचारी राज्य-कर वसूल करके खा जाया करते थे। बादशाहका मन्त्री
‘इसका सबसे बड़ा अपराध यही है कि यह नगरके देवी-देवताओंमें अविश्वास प्रकटकर नवयुवकोंको सत्य शिक्षणके नामपर गलत रास्तेपर ले जाता
इंगलैंडके इंजिनियरोंने वर्षों सरतोड़ परिश्रम किया था। सैकड़ों मजदूर लंबे समयतक काम करते रहे थे। प्रसिद्ध जलयान टिटैनिक जिस दिन
कुदरतका कानून एक सन्त अपने शिष्योंके साथ स्थान-स्थानपर भ्रमण कर रहे थे। एक दिन वे एक गाँवमें जा पहुँचे। के
एक महात्मा थे। वे काशीमें रहते थे। उनके पास एक बिल्ली थी, वह मर गयी। महात्माने उसको लाल कपड़े में
महाभारतका युद्ध समाप्त हो गया था। धर्मराज युधिष्ठिर एकच्छत्र सम्राट् हो गये थे। श्रीकृष्णचन्द्रकी सम्मति रानी द्रौपदी तथा अपने भाइयोंके
जितना दीखता है, उतना तो आगे बढ़ो एक सीधे-सादे किसानने पहले-पहल लालटेन जलाकर दो मील दूर किसी गाँवमें जानेके लिये