विषपान

buddhism temple monk

‘इसका सबसे बड़ा अपराध यही है कि यह नगरके देवी-देवताओंमें अविश्वास प्रकटकर नवयुवकोंको सत्य शिक्षणके नामपर गलत रास्तेपर ले जाता है। यूनानकी संस्कृति और नागरिकताका यह सबसे बड़ा शत्रु है। इसे मृत्यु दण्ड दिया जाय।’ मेलिटस और उसके साथियों-अनीटस और लीसनने अभियोग लगाया। एथेंसवासियोंकी बहुत बड़ी संख्या न्यायालयके बाहर निर्णयकी प्रतीक्षा कर रही थी।

‘नाटककार एरिस्टॉफनीसने अपने क्लाउड नाटकमें सुकरातको स्वर्ग पातालकी बात जाननेवाले और हवामें उड़नेवाले के रूप में चित्रित कर यह सिद्ध कर दिया है कि यह जनताको असत्य और अनाचारका पाठ पढ़ाता है मेलिटसने उसपर अभियोग चलाकर हमारे देशका बड़ा उपकार किया है। अपराधीको विषपानके द्वारा मृत्यु-वरणका दण्ड दिया जाता है।’ न्यायालयके इस निर्णयसे उपस्थित नागरिक विक्षुब्ध हो उठे। सुकरात मौन था। उसे कारागारमें डाल दिया गया।

‘मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप अब भी अपने प्राण बचा सकते हैं। इस कारागारसे निकल भागने में हमलोग आपकी पूरी पूरी सहायता करेंगे।’ क्रीटोने सुकरातको समझाना आरम्भ किया।

‘तुम सत्यसे अधिक कीमती और महत्त्वपूर्ण मृत्युको समझते हो क्रीटो सत्य अमर और अविनश्वर 1 ज्ञान है, वह शाश्वत प्रकाश है, उसे मृत्युके अन्धकारसे ढकना कदापि सम्भव नहीं है। सत्यकी बलिवेदी पर प्राण चढ़ा देना ही मेरा कर्तव्य है। इससे न्यायका भाल उन्नत होगा।’ सत्तर वर्षका वृद्ध सुकरात इस तरह क्रीटीको सदाचारकी शिक्षा दे ही रहा था कि मृत्युका । समय आ पहुँचा।
न्यायपतियोंके सेवकने विषसे भरा प्याला सुकरातके
हाथमें रख दिया। समस्त वातावरणमें विचित्र शोक
परिव्याप्त था।

‘अभी विष पीनेका समय नहीं आया है, सुकरात !

दिनका कुछ अंश शेष है।’ क्रीटोने उस समय विष पीनेसे मना किया। उसका प्रश्न था कि अन्त्येष्टिक्रिया किस तरह सम्पन्न हो पान ‘अपने भीतरकी चेतन आत्माका ज्ञान प्राप्त करो। यह ज्ञान ही सर्वव्यापक सत्य है अपने-आपको पहचानो। तुम शरीर नहीं, आत्मा हो, जो अमर है, चिरन्तन, शाश्वत और अक्षय है। मेरे भीतर स्थित आत्मसत्यको समझो क्रीटो। मृत्यु देहका नाश कर सकती है, आत्माके राज्यमें उसका प्रवेश नहीं है। – प्राणान्त होनेपर शरीरको समाधिस्थ कर देना।’ सुकरातने विषका प्याला ओठोंसे लगा लिया। वह न्यायपतिके आदेशके अनुसार टहल-टहलकर विष पी रहा था। उसके पैर लड़खड़ाने लगे।

‘तुम समझते होगे कि मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी और तत्काल विष पीना आरम्भ कर दिया। मैं सत्यके अमरलोकमें प्रवेश करनेमें क्षणमात्र भी विलम्ब नहीं करना चाहता था। अब हम दोनों एक-दूसरेसे अलग हो रहे हैं। तुम जीवनकी ओर जा रहे हो और मैं मरण पथपर हूँ जीवन और मरणमें कौन श्रेष्ठ है-इसका ज्ञान परमात्मा केवल परमात्माको ही है।’ सुकरात बहुत – देरतक अपने-आपको नहीं सँभाल सका। क्रीटोकी सहायतासे वह भूमिपर लेट गया। आँखोंके सामने अन्धकार था। क्रीटोने उसके मुखको मुखको कपड़ेसे ढक दिया।

आत्मवादी सुकरात सत्यके लिये विषपान कर धरतीपर अमर हो गया। – रा0 श्री0

‘इसका सबसे बड़ा अपराध यही है कि यह नगरके देवी-देवताओंमें अविश्वास प्रकटकर नवयुवकोंको सत्य शिक्षणके नामपर गलत रास्तेपर ले जाता है। यूनानकी संस्कृति और नागरिकताका यह सबसे बड़ा शत्रु है। इसे मृत्यु दण्ड दिया जाय।’ मेलिटस और उसके साथियों-अनीटस और लीसनने अभियोग लगाया। एथेंसवासियोंकी बहुत बड़ी संख्या न्यायालयके बाहर निर्णयकी प्रतीक्षा कर रही थी।
‘नाटककार एरिस्टॉफनीसने अपने क्लाउड नाटकमें सुकरातको स्वर्ग पातालकी बात जाननेवाले और हवामें उड़नेवाले के रूप में चित्रित कर यह सिद्ध कर दिया है कि यह जनताको असत्य और अनाचारका पाठ पढ़ाता है मेलिटसने उसपर अभियोग चलाकर हमारे देशका बड़ा उपकार किया है। अपराधीको विषपानके द्वारा मृत्यु-वरणका दण्ड दिया जाता है।’ न्यायालयके इस निर्णयसे उपस्थित नागरिक विक्षुब्ध हो उठे। सुकरात मौन था। उसे कारागारमें डाल दिया गया।
‘मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप अब भी अपने प्राण बचा सकते हैं। इस कारागारसे निकल भागने में हमलोग आपकी पूरी पूरी सहायता करेंगे।’ क्रीटोने सुकरातको समझाना आरम्भ किया।
‘तुम सत्यसे अधिक कीमती और महत्त्वपूर्ण मृत्युको समझते हो क्रीटो सत्य अमर और अविनश्वर 1 ज्ञान है, वह शाश्वत प्रकाश है, उसे मृत्युके अन्धकारसे ढकना कदापि सम्भव नहीं है। सत्यकी बलिवेदी पर प्राण चढ़ा देना ही मेरा कर्तव्य है। इससे न्यायका भाल उन्नत होगा।’ सत्तर वर्षका वृद्ध सुकरात इस तरह क्रीटीको सदाचारकी शिक्षा दे ही रहा था कि मृत्युका । समय आ पहुँचा।
न्यायपतियोंके सेवकने विषसे भरा प्याला सुकरातके
हाथमें रख दिया। समस्त वातावरणमें विचित्र शोक
परिव्याप्त था।
‘अभी विष पीनेका समय नहीं आया है, सुकरात !
दिनका कुछ अंश शेष है।’ क्रीटोने उस समय विष पीनेसे मना किया। उसका प्रश्न था कि अन्त्येष्टिक्रिया किस तरह सम्पन्न हो पान ‘अपने भीतरकी चेतन आत्माका ज्ञान प्राप्त करो। यह ज्ञान ही सर्वव्यापक सत्य है अपने-आपको पहचानो। तुम शरीर नहीं, आत्मा हो, जो अमर है, चिरन्तन, शाश्वत और अक्षय है। मेरे भीतर स्थित आत्मसत्यको समझो क्रीटो। मृत्यु देहका नाश कर सकती है, आत्माके राज्यमें उसका प्रवेश नहीं है। – प्राणान्त होनेपर शरीरको समाधिस्थ कर देना।’ सुकरातने विषका प्याला ओठोंसे लगा लिया। वह न्यायपतिके आदेशके अनुसार टहल-टहलकर विष पी रहा था। उसके पैर लड़खड़ाने लगे।
‘तुम समझते होगे कि मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी और तत्काल विष पीना आरम्भ कर दिया। मैं सत्यके अमरलोकमें प्रवेश करनेमें क्षणमात्र भी विलम्ब नहीं करना चाहता था। अब हम दोनों एक-दूसरेसे अलग हो रहे हैं। तुम जीवनकी ओर जा रहे हो और मैं मरण पथपर हूँ जीवन और मरणमें कौन श्रेष्ठ है-इसका ज्ञान परमात्मा केवल परमात्माको ही है।’ सुकरात बहुत – देरतक अपने-आपको नहीं सँभाल सका। क्रीटोकी सहायतासे वह भूमिपर लेट गया। आँखोंके सामने अन्धकार था। क्रीटोने उसके मुखको मुखको कपड़ेसे ढक दिया।
आत्मवादी सुकरात सत्यके लिये विषपान कर धरतीपर अमर हो गया। – रा0 श्री0

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