
यज्ञमें पशुबलिका समर्थन असत्यका समर्थन है
सृष्टिके प्रारम्भमें सत्ययुगका समय था। उस समय देवताओंने महर्षियोंसे कहा-‘श्रुति कहती है कि यज्ञमें अज बलि होनी चाहिये। अज बकरेका
सृष्टिके प्रारम्भमें सत्ययुगका समय था। उस समय देवताओंने महर्षियोंसे कहा-‘श्रुति कहती है कि यज्ञमें अज बलि होनी चाहिये। अज बकरेका
मध्यकालीन इतिहासमें अकबर बादशाहके सेनापति रहीम खानखानाका नाम बहुत प्रसिद्ध है। उनपर सरस्वती और लक्ष्मी दोनोंकी कृपा समानरूपसे थी। वे
भक्त ब्राह्मण श्रीविप्रनारायण भक्तपदरेणुने वेदाध्ययन करनेके उपरान्त अपना जीवन भगवान् श्रीरङ्गनाथके वरणोंमें अर्पित कर दिया। मन्दिरके चारों और एक वगाँचा
एक मुमुक्षुने अपने गुरुदेवसे पूछा- ‘प्रभो! मैं कौन-सी साधना करूँ ?’ ‘तुम बड़े जोरसे दौड़ो। दौड़नेके पहले यह निश्चित कर
भगवान् श्रीरामचन्द्र जब समुद्रपर सेतु बाँध रहे थे, तब विघ्ननिवारणार्थ पहले उन्होंने गणेशजीकी स्थापना कर नवग्रहोंकी नौ प्रतिमाएँ नलके हाथों
एक बार युधिष्ठिरने पितामह भीष्मसे पूछा ‘पितामह! क्या आपने कोई ऐसा पुरुष देखा या सुना है, जो एक बार मरकर
‘दीर्घसूत्री विनश्यति’ एक तालाब में, जिसमें थोड़ा ही जल था, बहुत सी मछलियाँ रहती थीं। उसमें तीन विशाल मस्त्य भी
एक समय श्रीमद्राघवेन्द्र महाराजराजेन्द्र श्रीरामचन्द्रने एक बड़ा विशाल अश्वमेध यज्ञ किया। उसमें उन्होंने सर्वस्व दान कर दिया। उस समय उन्होंने
बुरी संगतिका फल एक वृक्षके ऊपर एक कौआ घोंसला बनाकर रहता था। उसी पेड़के नीचे तालाबमें एक हंस भी रहता
भगवान्का दोस्त एक बच्चा दोपहरमें नंगे पैर फूल बेच रहा था, लोग मोलभाव कर रहे थे। एक सज्जन आदमीने उसके