
दीर्घसूत्री विनश्यति
‘दीर्घसूत्री विनश्यति’ एक तालाब में, जिसमें थोड़ा ही जल था, बहुत सी मछलियाँ रहती थीं। उसमें तीन विशाल मस्त्य भी

‘दीर्घसूत्री विनश्यति’ एक तालाब में, जिसमें थोड़ा ही जल था, बहुत सी मछलियाँ रहती थीं। उसमें तीन विशाल मस्त्य भी

एक समय श्रीमद्राघवेन्द्र महाराजराजेन्द्र श्रीरामचन्द्रने एक बड़ा विशाल अश्वमेध यज्ञ किया। उसमें उन्होंने सर्वस्व दान कर दिया। उस समय उन्होंने

बुरी संगतिका फल एक वृक्षके ऊपर एक कौआ घोंसला बनाकर रहता था। उसी पेड़के नीचे तालाबमें एक हंस भी रहता

भगवान्का दोस्त एक बच्चा दोपहरमें नंगे पैर फूल बेच रहा था, लोग मोलभाव कर रहे थे। एक सज्जन आदमीने उसके

[3] राष्ट्रधर्मका पालन महामहोपाध्याय पण्डित द्वारकाप्रसाद चतुर्वेदी उन दिनों सरकारी सेवामें थे। वे परम वैष्णव तथा धर्मका पालन करनेवाले महापुरुष

भविष्यकी चिन्ता मुसलिम सन्त करमानीकी बेटी उनसे बढ़कर थी। उसके सौन्दर्य और स्वभावकी कीर्ति सुनकर बादशाहने अपने शाहजादेके साथ उसके

‘मेरे बच्चो मेरे पास जो कुछ भी तुम्हें देनेके लिये है उसे मैं तुम दोनोंको बराबर-बराबर देता हूँ। मेरी सारी

लूसाने तंबाकू पीनेकी आदत छोड़नेका अमित प्रयत्न किया, पर वह सफल न हो सकी। चालीस सालकी अवस्थामें पहुँचनेपर उसका मन

एक राजाके पास दो शिकारी कुत्ते थे। वे एक दूसरेसे थोड़ी दूरपर रखे गये। उनमें प्रायः लड़ाई हुआ करती थी।

एक युवककी देशभक्ति स्वामी विवेकानन्द उन दिनों एक देशसे दूसरे देशकी यात्रापर थे। इसी दौरान वे जापानकी यात्रापर गये। जापानके