सच्ची माँग
‘सिन्धुका वेग बढ़ रहा है, महाराज! सेनाका पार उतरना कठिन ही है।’ सेनापतिने काश्मीरनरेश ललितादित्यका अभिवादन किया। पर हमें पञ्चनद
‘सिन्धुका वेग बढ़ रहा है, महाराज! सेनाका पार उतरना कठिन ही है।’ सेनापतिने काश्मीरनरेश ललितादित्यका अभिवादन किया। पर हमें पञ्चनद
एक स्त्री हमेशा अपने पतिको निन्दा किया करती थी। यह स्त्री पूजा करने और माला फेरनेमें तो अपना काफी समय
संसारके सम्बन्ध असत्य और अनित्य शूरसेन- प्रदेशमें किसी समय चित्रकेतु नामक अत्यन्त प्रतापी राजा थे। यद्यपि उनके रानियाँ तो अनेक
कामासक्तिसे विनाश शंखचूड नामसे प्रसिद्ध एक बलवान् यक्ष था, जो कुबेरका सेवक था । इस भूतलपर उसके समान गदायुद्ध विशारद
एक संत नौकामें बैठकर नदी पार कर रहे थे। संध्याका समय था। आखिरी नाव थी, इससे उसमें बहुत भीड़ थी।
जीवनकी प्राथमिकताएँ दर्शनशास्त्रके एक प्रोफेसरने कक्षामें आकर मेजपर काँचकी एक बरनी रख दी। फिर उसमें टेबल-टेनिसकी गेंद भर दी और
शत्रुता और मित्रता साथ-साथ नहीं रह सकती काम्पिल्य नगर में ब्रह्मदत्त नामका राजा राज करता था। उसके महलमें पूजनी नामक
किसी समय तुङ्गभद्रा नदीके किनारे एक उत्तम नगर था। वहाँ आत्मदेव नामके एक सदाचारी, कर्मनिष्ठ ब्राह्मण रहते थे। उनकी पत्नीका
नाग महाशयका सेवा-भाव तो अद्भुत ही था। एक दिन इन्होंने एक गरीब मनुष्यको अपनी झोपड़ी में भूमिपर पड़े देखा। आप
एक बार भगवान् श्रीकृष्णने गरुडको यक्षराज कुबेरके सरोवरसे सौगन्धिक कमल लानेका आदेश दिया। गरुडको यह अहंकार तो था ही कि