निर्लोभी कर्मचारी
रामदुलाल सरकार कलकत्ता हटखोलाके दत्तबाबुओंके यहाँ नौकरी करते। वेतन था पाँच रुपये मासिक । वे अपने मालिकोंके बड़े कृपापात्र थे।
रामदुलाल सरकार कलकत्ता हटखोलाके दत्तबाबुओंके यहाँ नौकरी करते। वेतन था पाँच रुपये मासिक । वे अपने मालिकोंके बड़े कृपापात्र थे।
उपहासका फल रुक्मीका भगवान् श्रीकृष्णके साथ पुराना वैर था। फिर भी अपनी बहन रुक्मिणीको प्रसन्न करनेके लिये उसने अपनी पौत्री
लेखककी जिन्दगी लंदनमें एक निर्धन बालक रहता था। उसे पेट भरनेके लिये कई तरहके काम करने पड़ते थे। इसलिये वह
एक घुड़सवार कहीं जा रहा था। उसके हाथसे चाबुक गिर पड़ा। उसके साथ उस समय बहुत से मुसाफिर पैदल चल
कुछ समय पूर्व बलरामपुरमें झारखंडी नामक शिवमन्दिरके निकट बाबा जानकीदासजी रहते थे। वैराग्य एवं सदाचारमय जीवन ही उनका आदर्श था।
श्रीरामका न्याय लंकाके निरंकुश शासक रावणको मारकर उसके धर्मनिष्ठ भाई विभीषणको राजपदपर अभिषिक्त करके महाराज श्रीराम अयोध्या लौट आये और
चन्द्रमाके समान उज्ज्वल, सुपुष्ट, सुन्दर सींगोंवाली नन्दा नामकी गाय एक बार हरी घास चरती हुई वनमें अपने समूहकी दूसरी गायोंसे
जासु सत्यता तें जड़ माया (श्रीशरदचन्द्रजी पेंढारकर) समर्थ गुरु रामदासजीका प्रतिदिन संध्या समय शिष्योंके साथ अध्यात्म चर्चाका नियम था, जिसमें
एक दिनकी बात है। योगिराज गम्भीरनाथ अपने कपिलधारा पहाड़ीवाले आश्रममें अत्यन्त शान्त और परम गम्भीर मुद्रामें बैठे हुए थे। वे
बात उस समयकी है जब श्रीरामानुजाचार्य अपने प्रथम विद्यागुरु श्रीयादवप्रकाशजीसे अध्ययन करते थे। यादवप्रकाशजी अपने इस अद्भुत प्रतिभाशाली शिष्यसे डाह