
लक्ष्मी कहाँ रहती हैं
एक बार इन्द्रने बड़ी कठिनतासे राजा यतिको ह निकाला। उस समय वे छिपकर किसी खाली घरमें गदहेके रूपमें कालक्षेप कर
एक बार इन्द्रने बड़ी कठिनतासे राजा यतिको ह निकाला। उस समय वे छिपकर किसी खाली घरमें गदहेके रूपमें कालक्षेप कर
विक्रमीय दसवीं शताब्दीकी बात है । — एक दिन काश्मीर-नरेश महाराज यशस्करदेव अपनी राजसभा बैठकर किसी गम्भीर विषयका चिन्तन कर
मैं अपने सारे सम्बन्ध, यौवन और धन आदिका त्यागकर संन्यास लूँगा। प्रवजित होना ही मेरे जीवनका लक्ष्य है।’ मगधदेशीय महातिथ्य
‘ऊधो! करमन की गति न्यारी’ (स्वामी श्रीशिवानन्दजी वैद्यराज) एक बहुत बड़ा सेठ विपुल सम्पत्ति छोड़कर मरा था। उसका एकमात्र पुत्र
परम्परा एवं रूढ़ि परम्पराओंके जन्म और दीर्घजीवी होनेके विषय में सचेत करती हुई एक झेन कथा कहती है कि एक
‘तुमलोगोंको किला छोड़नेके पहले सारे नगरको जलाकर नष्ट कर देना चाहिये। तुम्हारी संख्या दो सौ है; तुम्हें किसी बातका भय