पीड़ा एक समान
पीड़ा एक समान एक दुकानदार था – मनिराम। वह अपनी दुकानमें कुत्तेके बच्चे रखता था। एक दिन जब वह अपनी
पीड़ा एक समान एक दुकानदार था – मनिराम। वह अपनी दुकानमें कुत्तेके बच्चे रखता था। एक दिन जब वह अपनी
जनकपुरमें एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी। उसके एक छोटा लड़का था। एक बार वह कुछ लोगोंके साथ चित्रकूट जा रही
कलकत्ता हाईकोर्ट के जज स्वर्गीय श्रीगुरुदास बनर्जी अपने आचार-विचार, खान-पानमें बड़े कट्टर थे। ‘माडर्न रिव्यू’ के पुराने एक अङ्कमें श्रीअमल
सफलताका राज – सच्ची लगन संसारके सबसे महान् वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीनकी सफलतासे प्रभावित होकर कई युवा उनके पास आते थे
ऋषि ‘शब्द’ और ‘लिखित’ दो भाई थे दोनों ही बड़े तपस्वी थे और दोनों ही अलग-अलग आश्रम बनाकर रहते थे।
हजरत इब्राहीम जब बलखके बादशाह थे, उन्होंने एक गुलाम खरीदा। अपनी स्वाभाविक उदारता के कारण उन्होंने उस गुलामसे पूछा—’तेरा नाम
पंढरपुरकी कार्तिक-यात्राका मेला लगा था। अनेकों साधु-संत पधारे थे। एकादशीका निर्जल उपवास करके द्वादशीके दिन पारणके लिये सभी उतावले दीख
देवता और दैत्योंने मिलकर अमृतके लिये समुद्र मन्थन किया और अमृत निकला भी; किंतु भगवान् नारायणके कृपापात्र होनेसे केवल देवता
माता सुमित्रा अपने पुत्र लक्ष्मणका श्रीरामजीकी सेवाके लिये वन जानेका विचार सुनकर अत्यन्त प्रमुदित हो गयीं। उन्होंने जो कुछ कहा,
एक बार भक्त हरिदासजी सप्तग्रामके जमींदार हिरण्य मजूमदारके यहाँ हरिनामका माहात्म्य वर्णन करते हुए बोले कि ‘ भक्तिपूर्वक हरिनाम लेनेसे