
सम-वितरण
विभज्य भुञ्जते सन्तो भक्ष्यं प्राप्य सहाग्निना । चतुरश्चमसान् कृत्वा तं सोममृभवः पपुः ॥ (नीतिमञ्जरी 10 ) सुधन्वाके पुत्र ऋभु, विभु
विभज्य भुञ्जते सन्तो भक्ष्यं प्राप्य सहाग्निना । चतुरश्चमसान् कृत्वा तं सोममृभवः पपुः ॥ (नीतिमञ्जरी 10 ) सुधन्वाके पुत्र ऋभु, विभु
आखिरमें मिला क्या ? विश्व भ्रमणपर निकला एक धनी व्यापारी नीदरलैण्डके एम्सटर्डम शहरमें पहुँचा। वहाँ उसने एक अत्यन्त भव्य और
मार्गमें एक घायल सर्प तड़फड़ा रहा था । सहस्रों चींटियाँ उससे चिपटी थीं। पाससे एक सत्पुरुष शिष्यके साथ जा रहे
सार्थक जीवन हरी घासके बीच एक सूखी घासका तिनका पड़ा था। उसे देखकर हरी घास तिनकेके निष्क्रिय, अर्थहीन जीवनपर खिलखिलाकर
विवशतामें किये गये एकादशी व्रतका माहात्म्य पूर्वकालकी बात है, नर्मदाके तटपर गालव नामसे प्रसिद्ध एक सत्यपरायण मुनि रहते थे। वे
कृषकका सम्मान हो अमेरिकाके तृतीय राष्ट्रपति ‘टॉमस जैफरसन’ कृषकों एवं श्रमिकोंका बहुत सम्मान करते थे। स्वयं भी सादगीपूर्ण रीतिसे जीवनयापन
एक राजाके चार पत्त्रियाँ थीं। राजाने हर एकको एक-एक काम सौंप दिया। पहलीको दूध दुहनेका काम बताया, दूसरीको रसोई पकानेका,
मानव-जीवन एक शून्य- बिन्दुके सदृश है। तबतक उसका कुछ भी मूल्य नहीं, जबतक उसके आगे त्याग एवं वैराग्यका कोई अङ्क
सम्यक् सम्बोधि प्राप्त करनेके बाद भगवान् बुद्ध वाराणसी चले आये। मृगदाव ऋषिपत्तनमें पञ्चवर्गीय शिष्योंको सम्बुद्धकर उन्होंने चारिका विचरणके लिये उरुबल
मोहमें दुःख रामनगरके एक शाहजीने एक सफेद चूहा पाल रखा था। उसे वे बड़े प्यारसे खिलाते-पिलाते तथा देख भाल किया