
बड़ा सरल है उसे पाना
कुलपति स्कंधदेव के गुरुकुल में प्रवेशोत्सव समाप्त हो चुका था। कक्षाएँ नियमित रूप से चलने लगी थीं। उनके योग और
कुलपति स्कंधदेव के गुरुकुल में प्रवेशोत्सव समाप्त हो चुका था। कक्षाएँ नियमित रूप से चलने लगी थीं। उनके योग और
क्यों दर-दर पर जाकर भीख माँगनी है ? क्यों हर एक व्यक्ति से चेष्टा करनी है ? क्यों नहीं उससे
भावना या भाव बहुत मायने रखता हैआप किसी भी पूजा पद्धति का विष्लेषण करें बिना भाव के किसी भी प्रकार
एक बार आश्रम में एक नया शिष्य आया, आश्रम के नियमानुसार उसे भी प्रतिदिन संध्या – उपासना करनी थी !
स्वयं द्वारा स्वयं के विरुद्ध छेड़ा जाने वाला संग्राम ही संयम कहलाता है। संयम अर्थात एक युद्ध स्वयं के विरुद्ध।
एक आदमी को किसी ने सुझाव दिया, कि दूर से पानी लाते हो, क्यों नहीं अपने घर के पास ही
। जीवन संग्राम का सबसे बड़ा शास्त्र आत्मविश्वास है। जिसे अपने ऊपर, अपने संकल्प बल और पुरुषार्थ के ऊपर भरोसा
एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से जीवन जीने का सही समय पूछा। तब वह शिष्य को अपने साथ
यह सृष्टि चौरासी लाख योनियों का वन है, जिसमें विधाता ने हमें रखा है, जो प्रभु नाम रूपी आश्रय को
ॐ श्री परमात्मने नमः भगवान् प्रेमको जाननेवाले हैं । भगवान्के जैसा प्रेमको जाननेवाला, पहचाननेवाला कोई नहीं है । भगवान्को प्रेम