एक युद्ध, स्वयं के विरुद्ध
स्वयं द्वारा स्वयं के विरुद्ध छेड़ा जाने वाला संग्राम ही संयम कहलाता है। संयम अर्थात एक युद्ध स्वयं के विरुद्ध।
स्वयं द्वारा स्वयं के विरुद्ध छेड़ा जाने वाला संग्राम ही संयम कहलाता है। संयम अर्थात एक युद्ध स्वयं के विरुद्ध।
एक आदमी को किसी ने सुझाव दिया, कि दूर से पानी लाते हो, क्यों नहीं अपने घर के पास ही
। जीवन संग्राम का सबसे बड़ा शास्त्र आत्मविश्वास है। जिसे अपने ऊपर, अपने संकल्प बल और पुरुषार्थ के ऊपर भरोसा
एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से जीवन जीने का सही समय पूछा। तब वह शिष्य को अपने साथ
यह सृष्टि चौरासी लाख योनियों का वन है, जिसमें विधाता ने हमें रखा है, जो प्रभु नाम रूपी आश्रय को
ॐ श्री परमात्मने नमः भगवान् प्रेमको जाननेवाले हैं । भगवान्के जैसा प्रेमको जाननेवाला, पहचाननेवाला कोई नहीं है । भगवान्को प्रेम
जिस प्रकार एक वैद्य के द्वारा दो अलग- अलग रोग के रोगियों को अलग अलग दवा दी जाती
ज्ञानीजन कहते हैं के आत्मा को केवल आत्मा ही जानता है! पर अज्ञानीजनों का मानना है के यदि देह मनादि
शुभ प्रभातम्मन भी पानी जैसा ही है, पानी फर्श पर गिर जाए तो कहीं भी चला जाता है, मन भी
सदैव अच्छे कर्म करना चाहिए, क्योंकि बुरे कर्म हजारो जन्मों तक भी पीछा नहीं छोड़ते हैं…..सदियां गुजर गई लेकिन आज