
भाव की प्रधानता”
जिस प्रकार एक वैद्य के द्वारा दो अलग- अलग रोग के रोगियों को अलग अलग दवा दी जाती
जिस प्रकार एक वैद्य के द्वारा दो अलग- अलग रोग के रोगियों को अलग अलग दवा दी जाती
ज्ञानीजन कहते हैं के आत्मा को केवल आत्मा ही जानता है! पर अज्ञानीजनों का मानना है के यदि देह मनादि
शुभ प्रभातम्मन भी पानी जैसा ही है, पानी फर्श पर गिर जाए तो कहीं भी चला जाता है, मन भी
सदैव अच्छे कर्म करना चाहिए, क्योंकि बुरे कर्म हजारो जन्मों तक भी पीछा नहीं छोड़ते हैं…..सदियां गुजर गई लेकिन आज
“आत्माsस्य जन्तोर्निहितो गुहायाम्।” (उपनिषद्) भगवान् तो हमारे भीतर ही बैठे हैं, हम उन्हें बाहर ढूँढते-फिरते हैं। एक सेठ दिल्ली से
राम।। लोगोंने समझा है कि हम संसारके आदमी हैं और भगवान्की प्राप्ति बड़ी दुर्लभ, कठिन है। यह बात नहीं है।
घटना बंगाल प्रांत की है। वर्द्धमान जिले के एक विद्यालय में, एक बालक दसवीं कक्षा में पढ़ता था। वह पढ़ने
ब्यास मे एक मीटिंग हुईबाहर एक देश से एक माता आई हुईं थी- बाबा जी आपकी हस्तीकी है साथ ही
जय जय श्री राम…. मनुष्य जीवन परमात्मा का दिया गया एक श्रेष्ठ उपहार है। जीवन में बुराई अवश्य हो सकती
कन्हैया व्रज में एक गोपी के घर जाकर उस गोपी से कहते है- “क्या मैं तनिक सा मक्खन ले लूँ”गोपी