आत्मा परमात्मा हमारे भीतर ही है………
“आत्माsस्य जन्तोर्निहितो गुहायाम्।” (उपनिषद्) भगवान् तो हमारे भीतर ही बैठे हैं, हम उन्हें बाहर ढूँढते-फिरते हैं। एक सेठ दिल्ली से
“आत्माsस्य जन्तोर्निहितो गुहायाम्।” (उपनिषद्) भगवान् तो हमारे भीतर ही बैठे हैं, हम उन्हें बाहर ढूँढते-फिरते हैं। एक सेठ दिल्ली से
राम।। लोगोंने समझा है कि हम संसारके आदमी हैं और भगवान्की प्राप्ति बड़ी दुर्लभ, कठिन है। यह बात नहीं है।
घटना बंगाल प्रांत की है। वर्द्धमान जिले के एक विद्यालय में, एक बालक दसवीं कक्षा में पढ़ता था। वह पढ़ने
ब्यास मे एक मीटिंग हुईबाहर एक देश से एक माता आई हुईं थी- बाबा जी आपकी हस्तीकी है साथ ही
जय जय श्री राम…. मनुष्य जीवन परमात्मा का दिया गया एक श्रेष्ठ उपहार है। जीवन में बुराई अवश्य हो सकती
कन्हैया व्रज में एक गोपी के घर जाकर उस गोपी से कहते है- “क्या मैं तनिक सा मक्खन ले लूँ”गोपी
महाराजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ आरंभ करने की ठानी। महाराज की आज्ञानुसार श्यामकर्ण घोड़ा चतुरंगिनी सेना के साथ
हे मेरे भगवान् मेरे ये राम राम राम की माला हर घङी और हर पल मेरे अन्दर चलती रहे।ये माला
_जैसे एक माला में जितने अधिक रंग के पुष्प होंगे, माला उतनी ही खूबसूरत होगी, लेकिन सभी फूलों को एक
भगवान जो इस संपूर्ण सृष्टि के रचनाकार हैं, हम सब के प्रेम के भूखे हैं। हालाकि उन्हें किसी भी बात