भगवान्‌का प्रेमी सबमे ईश्वर को देखता है

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ॐ श्री परमात्मने नमः

भगवान् प्रेमको जाननेवाले हैं । भगवान्‌के जैसा प्रेमको जाननेवाला, पहचाननेवाला कोई नहीं है । भगवान्‌को प्रेम प्रदान करनेवाला मनुष्य है । मनुष्यके सिवाय भगवान्‌से प्रेम करनेकी शक्ति किसीमें नहीं है, देवताओंमें भी नहीं ! मनुष्य प्रेम प्रदान करता है और भगवान् प्रेमका पान करते हैं !

प्रेमाभक्तिमें बिना इच्छाके, जबर्दस्ती ज्ञान आता है‒‘अनइच्छित आवइ बरिआईं’ (मानस, उत्तर॰ ११९ । २) ! परन्तु भक्त उसकी परवाह नहीं करता । उसमें स्वतः-स्वाभाविक अखण्ड ज्ञान रहता है । अगर वह ज्ञानका विशेष आदर करेगा तो ज्ञान रहेगा, प्रेम नहीं बढ़ेगा । जब भक्त ज्ञानकी, मुक्तिकी परवाह नहीं करता, इनको ठुकरा देता है, तब प्रेम प्राप्त होता है ।

कामनावाला मनुष्य किसीसे प्रेम नहीं कर सकता ।

जो भगवान्‌का प्रेमी होता है, वह सम्पूर्ण संसारकी सेवा करनेवाला होता है; क्योंकि सबके मूलमें परमात्मा ही हैं । कोई आदमी कितना ही अच्छा हो, पर भगवान्‌का प्रेमी नहीं है तो कोई कामका नहीं है !

जबतक साधक अपने मनकी बात पूरी करना चाहेगा, तबतक उसका न सगुणमें प्रेम होगा, न निर्गुणमें ।

भगवान् मीठे लगें, भगवान्‌का नाम अच्छा लगे, भगवान्‌की लीला अच्छी लगे, भगवान्‌का तत्त्व प्रिय लगे, भगवान्‌का रहस्य अच्छा लगे । गंगाजी दीखे तो प्रसन्‍न हो जाय कि यह भगवान्‌के चरणोंका जल है ! भगवान्‌से सम्बन्धित कोई बात दीखे तो आनन्दित हो जाय । यह प्रेम है !

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
(‘कल्याणकारी सन्तवाणी’ पुस्तक से)



Om Sri Paramatmane Namah

God is the knower of love. There is no one who knows and recognizes love like God. One who gives love to God is a human being. No one has the power to love God except humans, not even the gods! Man gives love and God drinks love!

In love-devotion, without any desire, knowledge comes forcefully – ‘अनिच्छित आवाई बरियाई’ (Manas, Uttar. 119. 2) ! But the devotee does not care about that. Self-natural unbroken knowledge resides in him. If he gives special respect to knowledge, then knowledge will remain, love will not increase. When the devotee does not care about knowledge, liberation, rejects them, then love is attained.

A person with desires cannot love anyone.

One who is a lover of God, is the one who serves the whole world; Because at the core of everyone is the Supreme Soul. No matter how good a man is, but he is not a lover of God, he is of no use!

As long as the seeker wants to fulfill his wish, till then he will neither have love in Saguna nor in Nirguna.

God is sweet, God’s name is good, God’s deeds are good, God’s essence is dear, God’s mystery is good. When Gangaji sees it, he is pleased that it is the water of the Lord’s feet! If you see something related to God, you should be happy. This is love!

Revered Swamiji Shriramsukhdasji Maharaj (From the book ‘Kalyankari Santavani’)

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