यह लौकिकता से अलौकिकता की यात्रा है,
जय श्री कृष्ण जीयह लौकिकता से अलौकिकता की यात्रा है, एक लौकिक उदाहरण के साथ। बिधि- बिधान के साथ पाणिग्रहण
जय श्री कृष्ण जीयह लौकिकता से अलौकिकता की यात्रा है, एक लौकिक उदाहरण के साथ। बिधि- बिधान के साथ पाणिग्रहण
गुरुजी ! कृपा कर आप मेरे बारे में बतायें कि मैं कौन हूं? -उत्तर- बताना क्या है ! आपको पता
जानत प्रीति रीति रघुराई भगवान राम वनवास से आने के बाद माता केकैयी को पश्चाताप की अग्नि में जलते देखते
बुद्धत्व प्राप्ति के पूर्व बुद्ध के पांच शिष्य थे। वे सभी तपस्वी थे। तब बुद्ध स्वयं एक बड़े तपस्वी थे।
हृदय का द्रवित होना ही परमात्मा के अवतरित होने का प्रमाण है,,जिन महापुरुषों के ,, अंत:करण,, द्रवित होते हैं निश्चित
हे केशव जो व्यक्ति मन को जल्दी वश में न कर सके,वह कैसे सिद्धि प्राप्त कर सकता है वह मुझे
अर्थी पर पड़े हुए शव पर कपड़ा बाँधा जा रहा है। गिरती हुई गरदन को सँभाला जा रहा है। पैरों
हम भगवान पर पूर्ण विशवस करे। रामजी और कृष्णजी को हम भगवान कहते है लेकिन पूर्ण रूप से भगवान पर
राम राज्य का अर्थ है हमारे मन में पवित्रता हो। हमारे अन्तर्मन मे भगवान राम के आदर्श हो। जीवन में
जीवन यात्रा को पुरणता की ओर लेकर जाना हैंहमारा जन्म हुआ हमनें जीवन के सब सुख भोगते हुए परमात्मा का