
परमात्मा आनन्द स्वरूप हैं
परमात्मा श्रीराम परमानन्द के स्वरूप हैं। निराकार आनन्द ही नराकार। निराकार वस्तु आँख को दीखती नहीं। यह फूल साकार है,

परमात्मा श्रीराम परमानन्द के स्वरूप हैं। निराकार आनन्द ही नराकार। निराकार वस्तु आँख को दीखती नहीं। यह फूल साकार है,
राम नाम को सार है। राम नाम जितना गहरा होगा कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता है। कथा हमारे मन का

गुरू वाणी कहती है। विचार के स्वरुप साधना पर आधारित है। विचार के अनेक रूप है साधक की साधना की

परमात्मा दर्शन अभिलाषा ही लक्ष्य है, संकल्प ही शक्ति है। यही भीतर की खोज हमें आत्मा से परमात्मा की ओर ले
आत्म बोध आत्मज्ञान आत्मसमर्पण, आत्म स्वरूप आत्म तत्व,आत्मा ईश्वर है।तु विभो है व्यापक है।यह चैतन्य आत्मा ही ब्रह्म है तु

हम कितनी ही साधना करे, परमात्मा का चिन्तन मनन नाम जप करे। प्रभु कि कृपा के बैगर हम ठूठ के

ग्रथं को पढना हुए ग्रथं के रिदम का स्पर्श हमारा अन्तकरण कर लेता है तब वह रस हृदय को स्पर्श

ईश्वर एक है या अनेक ! वह साकार है या निराकार ! इस विषय के क्रम में निवेदन है कि-
बिना ज्ञान के मुक्ति नहींमै का मर जाना ही ज्ञान है। कर्ता का मिटना ज्ञान है। भगवान की भक्ति करते

!! श्री हनुमान जी !! रामायण के महान वानर देवता हनुमान अनुशासित और भक्ति से परिपूर्ण मन का प्रतीक है।