
[17]हनुमान जी की आत्मकथा
आज के विचार ( लंका में मुझे मेरा भाई मिला – हनुमान )भाग-17 तब हनुमन्त कहा सुनु भ्रातादेखी चहहुँ जानकी

आज के विचार ( लंका में मुझे मेरा भाई मिला – हनुमान )भाग-17 तब हनुमन्त कहा सुनु भ्रातादेखी चहहुँ जानकी

आज के विचार (समुद्र को जब मैंने लाँघा – हनुमान)भाग-14 जिमि अमोघ रघुपति कर बाना,एही भाँति चलेउ हनुमाना !(रामचरितमानस) भरत

(मैंने देखी वो रावण की लंका – हनुमान) गयउ दसानन मंदिर माहीं…(रामचरितमानस) हनुमान जी ! रावण की लंका कैसी थी

आज के विचार ( जामवन्त ने मुझे मेरी शक्ति याद दिलाई – हनुमान )भाग-13 सुनतहिं भयहुँ पर्वताकारा…(रामचरितमानस) हम सब लोग

(तब ऋषि ने मुझे श्राप दिया था – हनुमान) सुनतहिं भयहुँ पर्वताकारा…(श्रीरामचरितमानस) अयोध्या के उस राज उद्यान में, भरत जी

(जब बाली और सुग्रीव शत्रु बन गए – हनुमान) प्रीति रही कछु बरनी न जाई…(रामचरितमानस) भरत भैया ! पर इन

( किष्किन्धा का बाली ) बाली महाबल अति रनधीरा…(रामचरितमानस) किष्किन्धा को एक “वानर राज्य” कह सकते हैं… पर ये राज्य

(मैं खूब नाचा श्रीरामलला के सामने – हनुमान) दासोहम कौशलेन्द्रस्य…(वाल्मीकि रामायण) भरत भैया ! मैं आ गया था विद्या अध्ययन

(बचपन में मेरी माँ मुझे रामकथा सुनाती थीं – हनुमान) कल्प भेद हरि चरित सुहाये…(रामचरितमानस) चलो गोवर्धन हरि जी !

एक बार माँ सीता ने प्रभु श्रीराम से कहा- प्रभु आप हनुमानजी के ज्ञान और बुद्धिमत्ता की प्रशंसा करते रहते