
[8]हनुमानजी की आत्मकथा
( किष्किन्धा का बाली ) बाली महाबल अति रनधीरा…(रामचरितमानस) किष्किन्धा को एक “वानर राज्य” कह सकते हैं… पर ये राज्य
( किष्किन्धा का बाली ) बाली महाबल अति रनधीरा…(रामचरितमानस) किष्किन्धा को एक “वानर राज्य” कह सकते हैं… पर ये राज्य
(मैं खूब नाचा श्रीरामलला के सामने – हनुमान) दासोहम कौशलेन्द्रस्य…(वाल्मीकि रामायण) भरत भैया ! मैं आ गया था विद्या अध्ययन
(बचपन में मेरी माँ मुझे रामकथा सुनाती थीं – हनुमान) कल्प भेद हरि चरित सुहाये…(रामचरितमानस) चलो गोवर्धन हरि जी !
एक बार माँ सीता ने प्रभु श्रीराम से कहा- प्रभु आप हनुमानजी के ज्ञान और बुद्धिमत्ता की प्रशंसा करते रहते
आज के विचार (मुझे श्रीराम से प्रेम हो गया – हनुमान) पुलकित तन मुख आव न वचना…( रामचरितमानस ) मुझे
(गौरांगी के साथ “हनुमत्साधना” सम्बन्धी कुछ चर्चा…) महावीर विक्रम बजरंगी…(हनुमान चालीसा) हरि जी ! क्या लड़कियों कोउपासना करनी चाहिए ?
( जब मेरे आराध्य मेरे पास आये – हनुमान )भाग-10 पुनि प्रभु मोहि बिसारेहुँ, दीन बन्धु भगवान…(रामचरितमानस) ओह ! देखो
हनुमान जी को भगवान सदा अपने पास बैठाते है ; क्यों ? क्योंकि हनुमान जी ने तीन काम किये और
शंकर सुवन केसरी नन्दन…(हनुमान चालीसा) आपके जन्म के बारे में लोग कई बातें कहते हैं… कोई कहता है आपको अंजनी
अतुलित बल धामं हेम शैलावदेहम्…(श्री रामचरितमानस) रास्ते भर हनुमान जी को ही कहता रहा… उन्हें उनके श्री सीता राम जी