
” निष्कामता “
जब तक व्यक्ति के भीतर पाने की इच्छा शेष है, तब तक उसे दरिद्र ही समझना चाहिए। श्री सुदामा जी
जब तक व्यक्ति के भीतर पाने की इच्छा शेष है, तब तक उसे दरिद्र ही समझना चाहिए। श्री सुदामा जी
जब जब वृन्दावन सुधि आवत ।हृदयाकाश विरहघन उमड़त असुवन धार नैन-भरि लावत ॥फड़क उठत प्रति रोम रोम तन, मति बौरात
परंपराओं और ऐतिहासिक धरोहरों की भूमि भारत के हृदय में कई ऐसे भी राज दफ़्न हैं, जो कहानियां बनकर आज
एक दिन राधिका रानी गहवरवन में खेल रहीं थीं और श्रीकृष्ण उनको ढूंढ़ते-ढूंढ़ते नन्दगांव से चले । जब यहां पहुंचते
वृंदावन।क्या कभी ऐसा भी हो सकता है, जहां भगवान भक्तों की भक्ति से अभिभूत होकर या उनकी व्यथा से द्रवित
कृष्ण का नाम लेते हुए एक गोपी की आँखें बन्द हो गयीं, अश्रुधाराऐं बहने लगीं। कृष्ण ! कृष्ण ! कहते-कहते
श्री ब्रजभूमि प्रेममयी है। श्री ब्रजरज प्रेम प्रदाता है। श्री युगलकिशोर की कृपा से जिस देह में ब्रजरज लिपट गयी
वृंदावन मे बिहार से एक परिवार आकर रहने लगा। परिवार मे केवल दो सदस्य थे – राजू और उसकी पत्नी
“अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः।तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः।।”(श्रीमद्भगवद्गीता, ८/१४) “हे अर्जुन! जो अनन्य भाव से निरन्तर मेरा स्मरण
एक निकुंज में कान्हा जी एक पत्र में कुछ लिख रहे हैं, तभी एक गोपी उस वन की ओर आने