मीराबाई (Meerabai)

मीरा चरित भाग-40

म्हारो सगपण तो सूँ साँवरिया जग सूँ नहीं विचारी।मीरा कहे गोपिन को व्हालो म्हाँ सूँ भयो ब्रह्मचारी।चरण शरण है दासी

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मीरा चरित भाग- 39

मीरा की ‘दिखरावनी….. मेड़ता से गये पुरोहितजी के साथ चित्तौड़ के राजपुरोहित और उनकी पत्नी मीरा को देखने के लिये

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मीरा चरित भाग- 38

‘रावले छोटे भाई रतनसिंहजी की पुत्री के सम्बन्ध का प्रस्ताव लेकर वे श्रीजी के सम्मुख उपस्थित होंगे। सुना यह भी

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मीरा चरित भाग- 37

भोजराज की अंतर्वेदना और अंतर्द्वंद्व …. डेरे पर आकर वे कटे वृक्ष की भाँति पलंग पर जा गिरे। पर वहाँ

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मीरा चरित भाग- 35

उसने रैदासजी का इकतारा उठाया और गाने लगी- म्हारे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति

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मीरा चरित भाग- 36

ऐसी आशीष अब कभी मत दीजियेगा। आपके इस छोटे से भाई में इतना बड़ा आशीर्वाद झेलने का बल नहीं है।’कभी

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मीरा चरित भाग- 34

रनिवास में कानाफूसी….. राज्याभिषेक के समय वीरमदेवजी की आयु अड़तीस वर्ष थी। संवत् १५५३ में राणा रायमल की पुत्री और

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मीरा चरित भाग-33

दूदाजी लेट गये—’आपके रूपमें आज भगवान् पधारे हैं महाराज! यों तो सदा ही संतों को भगवत्स्वरूप समझकर जैसी बन पड़ी,

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मीरा चरित भाग- 32

‘हाँ, मीरा-जयमल मेरे पास आओ बेटा! मैं जयमल को योद्धा वेष में और मीरा को अपनी राजसी पोशाक में देखना

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मीरा चरित
भाग- 31

मैं कैसे अब दूसरा पति वर लूँ? और कुछ न सही, शरणागत समझकर ही रक्षा करो…. रक्षा करो! अरे, ऐसा

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