निज जननी के एक कुमारा –
|| संशय निवारण || निज जननी के एक कुमारा –*मानस का प्रसंग -मानस प्रेमीॐ हिरण्यगर्भ:समवत्तरताग्रे,भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।। सदाचार
|| संशय निवारण || निज जननी के एक कुमारा –*मानस का प्रसंग -मानस प्रेमीॐ हिरण्यगर्भ:समवत्तरताग्रे,भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।। सदाचार
।। नमो राघवाय ।। भगवान श्रीराम जानते थे कि उनकी मृत्यु का समय हो गया है। वह जानते थे कि
सीता-राम विवाह और राम का राज्याभिषेक दोनों शुभ मुहूर्त में किया गया, फिर भी न वैवाहिक जीवन सफल हुआ न
जब रावण ने देखा कि हमारी पराजय निश्चित है तो उसने 1000 अमर राक्षसों को बुलाकर रणभूमि में भेजने का
आदौ रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगं कांचनंवैदेहीहरणं जटायुमरणं सुग्रीवसंभाषणम्।वालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनंपश्चाद्रावणकुंभकर्णहननं एतद्धि रामायणम्।। ।। इति एकश्लोकि रामायणं सम्पूर्णम् ।। अर्थ-एक बार श्रीराम
परम पूज्य श्रीसदगुरूदेव भगवान जी की असीम कृपा एवं उनके अमोघ आशीर्वाद से प्राप्त सुबोध के आधार पर, उन्हीं की
परम पूज्य श्रीसदगुरूदेव भगवान जी की असीम कृपा एवं उनके अमोघ आशीर्वाद से प्राप्त सुबोध के आधार पर, उन्हीं की
परम पूज्य श्रीसदगुरूदेव भगवान जी की असीम कृपा एवं उनके अमोघ आशीर्वाद से प्राप्त सुबोध के आधार पर, उन्हीं की
।। नमो #राघवाय ।। नारदजी के वचन स्मरण करके किशोरीजी के मन में पवित्र प्रेम जाग्रत हो गया। सुमिरि सिय
भगवान राम जानते थे कि उनकी मृत्यु का समय हो गया है। वह जानते थे कि जो जन्म लेता है