महाराज दशरथ का जन्म वाल्मीकि रामायण में

दशरथ वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्या के रघुवंशी (सूर्यवंशी) राजा थे। वे राजा अज व इन्दुमतीके के पुत्र थेे तथा इक्ष्वाकुकुल मे जन्मे थे। वे प्रभु श्रीराम, जो कि विष्णु का अवतार थे, के पिता बने। राजा दशरथ के चरित्र में आदर्श महाराजा, पुत्रों को प्रेम करने वाले पिता और अपने वचनों के प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्ति दर्शाया गया है।

उनकी तीन पत्नियाँ थीं- कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेयी। अंगदेश के राजा रोमपाद या चित्ररथ की दत्तक पुत्री शान्ता महर्षि ऋष्यशृंग की पत्नी थीं। एक प्रसंग के अनुसार शान्ता दशरथ की पुत्री थीं तथा रोमपाद को गोद दी गयीं थीं।

महाराज दशरथ का जन्म बहुत ही एक अद्भुत घटना है। पौराणिक धर्मग्रंथों के आधार पर बताया जाता है कि एक बार राजा अज दोपहर की वंदना कर रहे थे। उस समय लंकापति रावण उनसे युद्ध करने के लिए आया और दूर से उनकी वंदना करना देख रहा था। राजा अज ने भगवान शिव की वंदना की और जल आगे अर्पित करने की जगह पीछे फेंक दिया।

यह देखकर रावण को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह राजा अज के सामने पहुंचा तथा पूछने लगा कि हमेशा वंदना करने के पश्चात जल का अभिषेक आगे किया जाता है, ना कि पीछे, इसके पीछे क्या कारण है?

राजा अज ने कहा- जब मैं आंखें बंद करके ध्यान मुद्रा में भगवान शिव की अर्चना कर रहा था। तभी मुझे यहां से एक योजन दूर जंगल में एक गाय घास चरती हुई दिखी और मैंने देखा कि एक सिंह उस पर आक्रमण करने वाला है तभी मैंने जल का अभिषेक पीछे की तरफ किया और मेरे जल ने तीर का रूप धारण कर लिया, जिससे उस सिंह की मृत्यु हुई। रावण को यह बात सुनकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ किंतु राजा अज ने कहा तुम यहां से पीछे एक योजन दूर जाकर यह दृश्य देख सकते हो।

रावण वहाँ गया और उसने देखा कि एक गाय हरी घास चर रही है जबकि शेर के पेट में कई बाण लगे हैं। अब रावण को विश्वास हो गया कि जिस महापुरुष के जल से ही बाण बन जाते हैं और बिना किसी लक्ष्य साधन के लक्ष्य बेधन हो जाता है ऐसे वीर पुरुष को जीतना बड़ा ही असंभव है, इसलिए वह उनसे बिना युद्ध किए ही लंका लौट जाता है।

एक बार की बात है जब राजा अज जंगल में भ्रमण करने के लिए गए थे तो उन्हें एक बहुत ही सुंदर सरोवर दिखाई दिया उस सरोवर में एक कमल का फूल था जो अति सुंदर प्रतीत हो रहा था।

उस कमल को प्राप्त करने के लिए राजा अज सरोवर में कूद गए किंतु यह क्या ? राजा अज कितना भी उस कमल के पास जाते वह कमल उनसे उतना ही दूर हो जाता और राजा अज उस कमल को नहीं पकड़ पाये।

अंततः आकाशवाणी हुई कि हे राजन आप नि:संतान हैं आप इस कमल के योग्य नहीं है। इस भविष्यवाणी ने राजा अज के हृदय में एक भयंकर घात कर दिया।

राजा अज अपने महल में लौट आए और चिंता ग्रस्त रहने लगे क्योंकि उन्हें संतान नहीं थी, जबकि वह भगवान शिव के परम भक्त थे।

भगवान शिव उनकी इस चिंता से व्याकुल हो उठे। उन्होंने धर्मराज को बुलाया और कहा- तुम ब्राह्मण के भेष में अयोध्या नगरी जाओ जिससे राजा अज को संतान की प्राप्ति होगी।

धर्मराज और उनकी पत्नी ब्राह्मण और ब्राह्मणी की वेश में सरयू नदी के किनारे कुटिया बनाकर रहने लगे। एक दिन धर्मराज ब्राह्मण के भेष में ही राजा अज के दरबार में गए और उनसे भिक्षा मांगने लगे।

राजा अज ने अपने खजाने में से उन्हें सोने की अशर्फियां देनी चाही, लेकिन ब्राह्मण यह कहते हुए मना कर दिया कि यह प्रजा का है आप अपने पास जो है, उसे दीजिए तब राजा अज ने अपने गले का हार उतारा और ब्राह्मण को देने लगे किंतु ब्राह्मण ने मना कर दिया कि यह भी प्रजा की ही संपत्ति है, इस प्रकार राजा अज को बड़ा दु:ख हुआ कि आज एक ब्राह्मण उनके दरबार से खाली हाथ जा रहा है।

तब राजा अज शाम को एक मजदूर का बेश बनाते हैं और नगर में किसी काम के लिए निकल जाते हैं। चलते-चलते वे एक लौहार के यहाँ पहुंचते हैं और अपना परिचय बिना बताए ही वहां काम करने लग जाते हैं पूरी रात हथौड़े से लोहे का काम करते रहे, जिसके बदले सुबह उन्हें एक टका मिला।

राजा उस एक टका को लेकर ब्राह्मण के घर पहुंचते हैं लेकिन वहां ब्राह्मण नहीं था उन्होंने वह एक टका ब्राह्मण की पत्नी को दे दिया और कहा कि इसे ब्राह्मण को दे देना। जब ब्राह्मण आया तो ब्राह्मण की पत्नी ने वह टका ब्राह्मण को दिया और ब्राह्मण ने उस टका को जमीन पर फेंक दिया। तभी एक आश्चर्यजनक घटना हुई ब्राह्मण ने जहां टका फेंका था वहां गड्ढा हो गया।

ब्राह्मण ने उस गढ्ढे को खोदा तो उसमें से सोने का एक रथ निकला और वह आसमान में चला गया इसके पश्चात ब्राह्मण ने और खोदा तो दूसरा सोने का रथ निकला और वह भी आसमान की तरफ चला गया इसी प्रकार, नौ सोने के रथ निकले और सभी आसमान की तरफ चले गए, लेकिन जब दसवाँ रथ निकला तो उस पर एक बालक था और वह रथ जमीन पर आकर ठहर गया।

ब्राह्मण उस बालक को लेकर राजा अज के दरबार में पहुंचे और कहा राजन- इस पुत्र को स्वीकार कीजिए यह आपका ही पुत्र है जो आपके एक टका से उत्पन्न हुआ है। इसके साथ में सोने के नौ रथ निकले थे जो आसमान में चले गए जबकि यह बालक दसवें रथ पर निकला। इसलिए यह रथ तथा पुत्र आपका है। इस प्रकार दसवें रथ से पैदा होने के कारण दशरथजी का जन्म हुआ था। महाराज दशरथ का असली नाम मनु था।

हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहु विधि सब संता।।

।। जय भगवान श्री ‘राम’ ।।

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