
।।श्री गणपतिस्तोत्रम् ।।
(श्रीमच्छ्ङ्कराचार्यविरचितं)
सुवर्णवर्णसुन्दरं, जो स्वर्ण के समान उज्जवल वर्णसे सुन्दर प्रतीत होते हैं। सितैकदन्तबन्धुरं। एक ही श्वेत दंत के द्वारा मनोहर जान
सुवर्णवर्णसुन्दरं, जो स्वर्ण के समान उज्जवल वर्णसे सुन्दर प्रतीत होते हैं। सितैकदन्तबन्धुरं। एक ही श्वेत दंत के द्वारा मनोहर जान
।। बाल मुकुंदाष्टकम् ।। करारविंदेन पदारविंदंमुखारविंदे विनिवेशयंतम्।वटस्य पत्रस्य पुटे शयानंबालं मुकुंदं मनसा स्मरामि।।१।। संहृत्य लोकान्वटपत्रमध्येशयानमाद्यंतविहीनरूपम्।सर्वेश्वरं सर्वहितावतारंबालं मुकुंदं मनसा स्मरामि।।२।। इंदीवरश्यामलकोमलांगंइंद्रादिदेवार्चितपादपद्मम्।संतानकल्पद्रुममाश्रितानांबालं
।। श्रीकृष्णद्वादशनामस्तोत्रम् ।। श्री गणेशाय नमः। श्रीकृष्ण उवाच।किं ते नामसहस्रेण विज्ञातेन तवाऽर्जुन।तानि नामानि विज्ञाय नरः पापैः प्रमुच्यते।।१।। प्रथमं तु हरिं
(भोलेनाथ शंभू को प्रसन्न करने को भगवान श्रीराम द्वारा गाई गई स्तुति) नमामि शम्भो नमामि शम्भो !नमामि शम्भो नमामि शम्भो
।। ।। नम: पुरुषोत्तमाख्याय नमस्ते विश्वभावन।नमस्तेस्तु हृषिकेश महापुरुषपूर्वज।।१।। येनेदमखिलं जातं यत्र सर्व प्रतिष्ठितम।लयमेष्यति यत्रैतत तं प्रपन्नोस्मि केशवं।।२।। परेश: परमानंद: परात्परतर:
धनदा उवाच।देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम्।।१।। देव्युवाच।ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्।।२।। शिव उवाच।पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह
ईश्वर उवाचशतनाम प्रवक्ष्यामि श्रृणुष्व कमलानने।यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती।।१।। ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी।आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा
।। ।। ॐ कृपासमुद्रं सुमुखं त्रिनेत्रंजटाधरं पार्वतीवामभागम्।सदाशिवं रुद्रमनन्तरूपंचिदम्बरेशं हृदि भावयामि।।१।। वाचामतीतं फणिभूषणाङ्गंगणेशतातं धनदस्य मित्रम्।कन्दर्पनाशं कमलोत्पलाक्षंचिदम्बरेशं हृदि भावयामि।।२।। रमेशवन्द्यं रजताद्रिनाथंश्रीवामदेवं भवदुःखनाशम्।रक्षाकरं
माणिक्यं ततो रावणनीतायाः सीतायाः शत्रुकर्शनः। इयेष पदमन्वेष्टुं चारणाचरिते पथि।। (यह सुन्दरकाण्ड का पहला श्लोक है, रत्न- माणिक, ग्रह- सूर्य) तब
नमस्ते भगवान देव, लोकनाथ जगतपते।क्षीरोदवासिनं देवं शेषभोगानुशायिनम्।। हे भगवान देव, हे जगत के स्वामी, हे क्षीर समुद्र में वास करने