
नारदका कामविजयका अभिमान भङ्ग
हिमालय पर्वतपर एक बड़ी पवित्र गुफा थी, जिसके समीप ही गङ्गाजी बह रही थीं । वहाँका दृश्य बड़ा मनोहर तथा

हिमालय पर्वतपर एक बड़ी पवित्र गुफा थी, जिसके समीप ही गङ्गाजी बह रही थीं । वहाँका दृश्य बड़ा मनोहर तथा

द्रुपदकथाके निहितार्थ पांचाल देशके राजकुमार द्रुपद और द्रोणने ऋषि भरद्वाजके आश्रममें रहते हुए एक साथ अस्त्र-शस्त्रोंके संचालनकी विद्या सीखी। पिताको

सम्राट् नेपोलियन युद्धमें पराजित हो गये थे। अंग्रेजोंने उन्हें बंदी बना लिया था। एक अंग्रेजी जहाजसे वे सेंट हेलेना द्वीप

सीख एक गुरुकी उत्तर भारतके पहाड़ी इलाकेमें एक गुरुका आश्रम था। उनके पास सुदूर क्षेत्रोंसे शिष्य शिक्षा ग्रहण करने आते

महाराज ययातिने दीर्घकालतक राज्य किया था। अन्तमें सांसारिक भोगोंसे विरक्त होकर अपने छोटे पुत्र पुरुको उन्होंने राज्य दे दिया और

मेरा अपना कुछ नहीं पारसी धर्मगुरु रवि मेहरके तीन पुत्र थे। वे तीनोंके तीनों महामारीकी चपेटमें आ गये और अच्छी

प्रेरणाके लघु दीप (1) महात्मा गाँधीकी सत्यनिष्ठा गाँधीजीसे एक अंग्रेजने पूछा कि ‘विपरीत स्थितिमें विरोधियोंके बीच भी आप सही बात

अयोध्या नरेश महाराज हरिश्चन्द्रने स्वप्रमें एक ब्राह्मणको अपना राज्य दान कर दिया था। जब वह ब्राह्मण प्रत्यक्ष आकर राज्य माँगने

एक चाँदनी रातमें दैवयोगसे एक भेड़ियेको एक अत्यन्त मोटे-ताजे कुत्तेसे भेंट हो गयी। प्राथमिक शिष्टाचारके बाद भेड़ियेने कहा- ‘मित्र! यह

पहले तोलो, फिर बोलो एक बालक एक ज्ञानी पुरुषके पास गया और उनसे कहा- ‘देव! मैं बहुत पढ़ता हूँ, लिखता