बूढ़े आदमीका वरदान
बूढ़े आदमीका वरदान पुराने समयकी बात है। एक बार तीन भाई कामकी खोज में भटकते-भटकते यूनान देशमें पहुँचे। वे लम्बे
बूढ़े आदमीका वरदान पुराने समयकी बात है। एक बार तीन भाई कामकी खोज में भटकते-भटकते यूनान देशमें पहुँचे। वे लम्बे
लगभग तीन हजार साल पहलेकी बात है। भगवान् गौतम बुद्ध कुरुदेशके कल्माषदम्प निगम (उपनगर) में विहार करते थे। वे निगमके
लोग उन्हें काछी बाबा कहते थे। वे जातिके काछी थे और साधु होनेसे नहीं, वृद्ध होनेसे उस प्रदेशकी प्रथाके अनुसार
कर्णका वास्तविक नाम तो वसुषेण था। माताके गर्भसे वसुषेण दिव्य कवच और कुण्डल पहिने उत्पन्न हुए थे। उनका यह कवच,
राजपुरोहित तथा सेठ सुदर्शनकी प्रगाढ़ मैत्री थी। पुरोहितजीकी पत्नीने सेठके सदाचारकी परीक्षा लेनेका निश्चय किया। एक दिन जब पुरोहितजी घरसे
प्राचीन समयकी बात है। यूनान अपनी कला और दर्शनके लिये दूर-दूरके देशोंमें प्रसिद्ध था। यूनानके कारिन्थ प्रदेशमें पेरिवंडर नामका एक
खुशी बाँटो, खुश रहो एक कंजूस सेठ था। उसकी कंजूसीके कारण पड़ोसी, मित्र, रिश्तेदार यहाँतक कि उसकी पत्नी और बेटे
हमारे हितकी भाषाका प्रयोग एक धनी व्यक्तिके घरमें आग लग गयी। बाहर निकलनेका केवल एक दरवाजा था। वहाँ एक कमरे
विराट् विश्वको अभय, अद्वेष और अखेदका दिव्य संदेश देनेवाले भगवान् महावीरने साधना-पथपर चलनेवाले साधकोंको सम्बोधित करके कहा- ‘साधको! तुम स्वयं
‘कर्मफल तो भोगना ही पड़ता है’ मार्गमें एक घायल सर्प तड़फड़ा रहा था। सहस्रों चींटियाँ उससे चिपटी थीं। पाससे एक