अध्यात्मवाद (Adhyatmvad)

आत्मा ईश्वर है

एक दिन साधक के हृदय में प्रशन उठता है आत्म बोध आत्मज्ञान क्या है , आत्म स्वरूप कैसे होता है।

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पकङ मजबूत रखे

हम सब पुराने किये हुए पर ही मन बहलाते है हम भी मनुष्य रूप में आये हैं हममे भी चिन्तन

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जागते रहे

होश होतो दूसरा न तो कल्याणकारी हैऔर न अकल्याणकारी;होश हो तो आप सभी जगह से अपनेकल्याण को खींच लेते हैं।वहीं

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वैराग्य

एक भक्त के दिल की तङफ होती है कब मेरे अन्दर वैराग्य आएगा। भक्त सोचता है पुरण वैराग्य आ जाए

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दृढ विश्वास

महामुनी व्यास को नदी के उस पार जाना था ,और वे नाव के प्रशिक्षा कर रहे थे,कि इतने में वहां

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