
प्रभु संकीर्तन 50
हम भगवान् के मन्दिर में जाकर दर्शन करते हैं इसलिए हमें लगता है कि भगवान मन्दिर में ही रहते हैं।
हम भगवान् के मन्दिर में जाकर दर्शन करते हैं इसलिए हमें लगता है कि भगवान मन्दिर में ही रहते हैं।
(1) होली –अर्थात हम भगवान के “होलिए”। तन, मन, धन, समय, श्वास, संकल्प, सब भगवान के लिए है।(2) होली :-अर्थात
“ सागरके मोती “कोई भी परिस्थिति रहनेवाली नहीं है । अभी जो है, वह क्या ठहरेगी ? इसपर स्वयं विचार
!! श्रीहरि: !!श्रीराम की कृपा —तुलसी रामहु तें अधिक राम भगत जियँ जान ।रिनिया राजा राम भे धनिक भए हनुमान
संसार सागर में अंधेरे और उजाले दोनों हैं… जरूरी नहीं कि हम अपने इन बाहर खुले हुए नेत्रों से दिखाई
तुलसीदास जी कृत “श्री रामचरितमानस से साभार ‘ जय हनुमन्त सन्त हितकारी।सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥जन के काज विलम्ब
|| श्री हरि: || भगवान् की विशेष कृपा से मनुष्य शरीर मिलता है | मनुष्य-शरीर, मुमुक्षा और सत्संग – ये
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर॥21॥भावार्थ:-तुलसीदासजी कहते हैं, यदि तू भीतर और बाहर दोनों
।राम। ।राम। ।राम। ।राम।यह संसार उत्पन्न नहीं हुआ था, तब एक भगवान् ही थे और यह संसार नहीं रहेगा तब
जय श्री राम हमें भगवान की भक्ति करते हुए सरवरूप परमात्मा की झलक और सबमे परमात्मा के प्रकाश की झलक