प्रभु संकीर्तन 46

“ सागरके मोती “
कोई भी परिस्थिति रहनेवाली नहीं है । अभी जो है, वह क्या ठहरेगी ? इसपर स्वयं विचार करो । जबतक परमात्मा नहीं मिले, तबतक क्या हो गया ? गुरु बना लिया, चेला बन गये तो क्या हो गया ?क्या आप कृतकृत्य, ज्ञातज्ञातव्य, प्राप्तप्राप्तव्य हो गये ?
बाहरसे यथायोग्य सब काम करते हुए भी भीतरमें आनन्द रहे, चिंता न रहे । बाहर चाहे जैसी परिस्थिति आये, भीतरका आनन्द कम नहीं होना चाहिये ।

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