रामायण (Ramayan)

रामसेतु

मम कृत सेतु जो दरसनु करिही।सो बिनु श्रम भवसागर तरिही।। प्रभु श्रीराम कहते हैं, जो मेरे बनाए सेतु का दर्शन

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भगवान राम स्तुति

।। नमो राघवाय ।। सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा।गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा।। अगुन अरूप अलख अज जोई।भगत प्रेम बस

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भगवान श्रीराम का शब्दावतार ।।
(श्रीरामचरितमानस)

रामचरितमानस एहि नामा।सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा।। मन करि बिषय अनल बन जरई।होई सुखी जौं एहिं सर परई।। भावार्थ-इसका नाम रामचरितमानस

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श्री सीताराम लक्षमण स्तुति

जय श्री राम ! शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदंब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् |रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिंवन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम् | सीता माता

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“राम की महतारी”

राम- वन- गमन और भरत से धिक्कार खाई पाश्चाताप की आग में जलती कैकयी ने अपने को भवन के कक्ष

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