
भगवान राम के अयोध्या आने पर चोपाई
जासु बिरहं सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पांती॥ रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता॥ रिपु
जासु बिरहं सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पांती॥ रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता॥ रिपु
।। नमो राघवाय ।। जुबतीं भवन झरोखन्हि लागीं।निरखहिं राम रूप अनुरागीं।। कहहिं परसपर बचन सप्रीती।सखि इन्ह कोटि काम छबि जीती।।
श्री रामाय नमः देखरावा मातहि निज अद्भुत रूप अखंड।रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मंड।। अगनित रबि ससि सिव चतुरानन।बहु
तुलसी
दासजी के राम' केवल दो लोगों का आतिथ्य स्वीकार करते हैं
रामचरितमानस देखें तो वनवास की अपनी महायात्रा के मध्य ‘ तुलसीदासजी के राम’ केवल दो लोगों का आतिथ्य स्वीकार करते
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।। लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी।भूषन
प्रभु प्रसाद सूचि सुभग सुबासा।सादर जासु लहइ नित नासा।। तुम्हहि निबेदित भोजन करहीं।प्रभु प्रसाद पट भूषन धरहीं।। सीस नवहिं सुर
सचिव सत्य श्रद्धा प्रिय नारी।माधव सरिस मीतु हितकारी।। चारि पदारथ भरा भँडारु।पुन्य प्रदेस देस अति चारु।। छेत्रु अगम गढु गाड़
।। नमो राघवाय ।। आजु सुफल तपु तीरथ त्यागू।आजु सुफल जप जोग बिरागू।। सफल सकल सुभ साधन साजू।राम तुम्हहि अवलोकत
जय श्री सीताराम जी की आप सभी श्रीसीतारामजीके भक्तों को प्रणाम श्री रामचरित मानस अयोध्या काण्डछन्द :अवगाहि सोक समुद्र सोचहिंनारि
– श्रीरामचरितमानस ——श्रीराम नाम महिमा ——-नारद जानेउ नाम प्रतापू ।।जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू ।नामु जपत प्रभु कीन्ह