
दुःखोंका मूल- ‘मैं- मेरापन ‘
जय श्री हरि। एक मनुष्यके पास एक घोड़ा था। घोड़ा भूखा हो, तो दुःख । बिगड़ जाये, तो दुःख ।
जय श्री हरि। एक मनुष्यके पास एक घोड़ा था। घोड़ा भूखा हो, तो दुःख । बिगड़ जाये, तो दुःख ।
एक बार कागज का एक टुकड़ा हवा के वेग से उड़ा और पर्वत के शिखर पर जा पहुँचा…पर्वत ने उसका
पिता बेटी के सर परहाथ रख कर बोला-मैं तेरेलिए ऐसा पतिखोजकर लाऊंगा जो तुझे बहुतप्यार करे,तेरी भवनाओं का सम्मानकरे,तेरे दुख
एक घर मे तीन भाई और एक बहन थी…बड़ा और छोटा पढ़ने मे बहुत तेज थे। उनके मा बाप उन
मां सालों से अपनी वही लोहे की अलमारी में ही सामान रखा करती थी जो नानी ने उनको शादी में
सुबह के समय बैड पर सोया इक्कीस वर्षीय विश्वास उठकर कमरे से बाहर निकल; किचन की ओर आने लगा। किचन
जैसे एक ही चाबी ताले को खोलती भी है और बंद भी करती है, एक ही मन बंधन का भी
पापा के सपने में एक बार बचपन में पापा से गुस्सा होकर घर से चल दिया इतना गुस्सा था कि
मेरी बेटी की शादी थी और मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर शादी के तमाम इंतजाम को देख रहा
“धनवान परिवार में जन्म होने के कारण जिन बच्चों को जन्म से ही सब सुविधाएं मिल जाती हैं। उन्हें माता