मै कोई छोटा बच्चा नहीं हूँ

indian temple

सुबह के समय बैड पर सोया इक्कीस वर्षीय विश्वास उठकर कमरे से बाहर निकल; किचन की ओर आने लगा। किचन में सैंतालिस साल की मम्मी कोमल गैस चूल्हे पर परांठे बना रही थी। विश्वास ने किचन में आकर कप लिया और चाय के पतीले से कप में चाय डालने लगा।
कोमल ने सर हिलाते हुए मुस्कुराकर कहा, “मुँह तो धो, सुगले। इतना बड़ा हो गया लेकिन अभी तक अक्ल नहीं आयी।”
विश्वास ने लापरवाही से कहा, “क्या फर्क पड़ता है? रहना तो घर में ही है।”
“उफ्फ! पता नहीं क्या होगा इस लड़के का?” कहते हुए कोमल ने मुँह बनाया।
विश्वास ने चाय का घूँट पीते हुए कहा, “क्या होगा? तुम कुछ करने कहाँ देती हो?”
“क्या नहीं करने देती मैं? क्या करने से रोका मैंने?” कोमल चिढ़कर बोली।
विश्वास ने उखड़कर कहा, “अब रहने भी दो मम्मी। सुबह-सुबह दिमाग मत ख़राब करो मेरा।”
इस बार कोमल ने मुस्कुराकर कहा, “पर, बताओ तो? मन की बात मन में नहीं रखनी चाहिए।”
विश्वास ने बिफरते हुए चाय का प्याला रखकर कहा, “तुम मन का कुछ करने भी देती हो? दस मिनट के लिए घर से बाहर जाओ, तो तुम्हें बताकर जाओ। पाँच मिनट देर हो जाए तो फोन पर फोन, फोन पर फोन। आख़िर में तंग आकर मोबाइल स्विच ऑफ करना पड़ता है।”
कोमल बेलन रखकर गैस बन्द करते हुए बोली, “ओहो! तो कौनसा गुनाह करती हूँ? बस यही तो पूछती हूँ, कहाँ जा रहे हो? किसके साथ जा रहे हो? कब आओगे? और देर होने पर सबको चिन्ता होती है। माँ हूँ तुम्हारी। चिन्ता तो होगी ही।”
विश्वास क्रोधित होकर कोमल पर झल्लाते हुए चिल्ला-चिल्लाकर बोला- “क्यों करती हो मेरी चिन्ता? मैं मर थोड़े ही रहा हूँ। तुम्हारी इस चिन्ता के कारण मेरा दम घुटता है। सब मज़ाक उड़ाते हैं मेरा। मुझे मेरे हिसाब से जीने क्यों नहीं देती? जब देखो, मैं माँ हूँ, माँ की चिन्ता, माँ की ममता, माँ का प्यार। मैं अपना ध्यान ख़ुद रख सकता हूँ। मुझे अब तुम्हारी ज़रूरत नहीं है। मुझे मेरी ज़िन्दगी मेरे हिसाब से जीने दो।”
कोमल का मुँह उतर गया और आँखों में नमी आ गई। कोमल ने गैस चूल्हे की ओर मुड़कर गैस चालू करके रोटी बेलते हुए कहा- “आई एम सॉरी। अब कुछ नहीं पूछूँगी। कभी फोन भी नहीं करूँगी। तुम्हें जहाँ जाना है, चले जाना।”
विश्वास मुँह फेरकर कोमल की बातें अनसुनी करके अपने कमरे में चला गया।
कोमल दुःखी मन से खाना बनाने के बाद नहाकर, तैयार होकर विश्वास के कमरे में आकर बोली, “तुम्हारे लिए नाश्ता और दोपहर का खाना बना दिया है। टाइम से खा लेना। मैं जॉब पर जा रही हूँ।”
विश्वास अभी तक क्रोध में होने के कारण चुपचाप बैठा रहा। कोमल बाहर आकर अपना पर्स उठाकर चली गयी।
शाम के छः बज गए।
विश्वास ने दीवार घड़ी में टाइम देखकर मन में सोचा कि आज मम्मी कहाँ रह गयी? रोज़ तो पाँच-साढ़े पाँच बजे तक आ जाती है। विश्वास को अपनी ग़लती पर अफ़सोस होने लगा लेकिन अब भी इसके लिए क़सूरवार कोमल को ही मान रहा था। उसने साढ़े छः बजे तक इंतज़ार करके कोमल के मोबाइल पर कॉल किया, लेकिन कोमल का मोबाइल स्विच ऑफ पाकर अचानक उसके मन में घबराहट होने लगी।
विश्वास के मन में ख़याल आने लगे कि “मम्मी आज बहुत अपसेट होकर गई थी। कहीं परेशान होने के कारण मम्मी को कुछ हो न गया हो?”
विश्वास की घबराहट धीरे-धीरे और बढ़ने लगी। उसने तुरंत कोमल के ऑफ़िस में कॉल करके कोमल के बारे में पूछा, लेकिन ऑफ़िस से पता चला कि कोमल तो आज लंच टाइम में ही चली गई थी। विश्वास और भी ज़्यादा परेशान हो गया। उसने कोमल की सहेलियों और मिलने-जुलने वालों को कॉल करके कोमल के बारे में पूछा, लेकिन सबने कहा कि कोमल उनके पास तो नहीं आयी।
अँधेरा होने पर विश्वास ख़ुद जहाँ-जहाँ कोमल के मिलने की संभावना थी, वहाँ-वहाँ कोमल को ढूँढ़ने गया लेकिन कोमल के नहीं मिलने पर निराश होकर दुखी मन से घर वापस आकर बैठ गया।
रात के दस बजे घर के बाहर एक ऑटो आकर रुका।
विश्वास दौड़कर दरवाज़े के पास आया। कोमल ऑटो वाले को पैसे देकर मुस्कुराती हुई अन्दर आयी।
विश्वास ने आश्चर्य से पूछा- “कहाँ रह गयी थीं आप? मोबाइल भी बन्द है।”
कोमल ने लापरवाही से कहा- “अरे, कहीं नहीं। एक पुरानी सहेली मिल गयी थी तो उसके साथ घूमने चली गयी।”
विश्वास ने आश्चर्यचकित होकर कहा- “लेकिन कम से कम बताना तो चाहिए। कहाँ हो? किसके साथ हो? कब आओगी? और मोबाइल को क्या हुआ?”
“क्यों? मैं कोई छोटी बच्ची हूँ? जो हर बात तुम्हें बताऊँ? पुरानी सहेली से बहुत टाइम बाद मिली। ढेरों बातें हुई। कोई बार-बार कॉल करके डिस्टर्ब न करे इसलिए मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया।” कोमल ने सहज भाव से उत्तर दिया।
विश्वास क्रोधित होकर बोला, “आपका सही है। मैं यहाँ परेशान होकर कभी किसी को कॉल कर रहा हूँ, कभी किसी को कॉल कर रहा हूँ। पागलों की तरह ढूँढ़ता फिर रहा हूँ और तुम कह रही हो, मैं कोई छोटी बच्ची हूँ?”
कोमल ने मुस्कुराकर कहा, “मैं भी तो तुम्हारे मोबाइल बन्द करने पर ऐसे ही परेशान होती हूँ। तुम तो मुझसे दूर जाना चाहते हो न? फिर मेरा ख़याल कौन रखेगा? तुम्हारे सिवा और कौन है मेरा ख़याल रखने वाला?”
विश्वास ने शर्मिन्दा होकर सर झुकाकर कहा, “आई एम सॉरी, मम्मी। मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा। प्लीज़! फिर कभी ऐसा मत करना।”
विश्वास की आँखों से आँसू छलकते देखकर कोमल की आँखों से भी अश्रुधारा बहने लगी और उसने अपने आँसू पोंछते हुए विश्वास को गले लगा लिया।

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *