( मैं का अहंकार )
.बात है प्रभु श्री कृष्ण के बाल्यकाल की। कन्हैया को माखन चोरी का बहुत शौक था।.सब गोप ग्वालो के साथ
.बात है प्रभु श्री कृष्ण के बाल्यकाल की। कन्हैया को माखन चोरी का बहुत शौक था।.सब गोप ग्वालो के साथ
स्वामी उग्रानन्दजी बहुत अच्छे सन्त थे। आप बड़े सहिष्णु तथा सर्वत्र भगवद्बुद्धि रखने वाले थे। एक बार आप
.एक बार एक स्वामी जी भिक्षा माँगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगायी,.भीक्षा दे दे
एक पुत्र अपने वृद्ध पिता को रात्रिभोज के लिये एक अच्छे रेस्टोरेंट में लेकर गया। खाने के दौरान वृद्ध पिता
देवता सभी पूज्य हैं; किंतु एक बार देवताओं में विवाद हो गया कि उनमें प्रथम पूज्य कौन है ? जब
श्राद्धीय अन्न चमारको खिला देनेसे पैठणके ब्राह्मण एकनाथ स्वामीपर रुष्ट हो गये थे। फिर नया स्वयंपाक बना, उन्हें बुलानेपर भी
सन् 1656 की बात है, शिवाजी महाराज रायगढ़ से चलकर सताराके किलेमें आकर निवास कर रहे थे। एक दिन वे
राजकविकी चतुराई अकबरके सेनापति मानसिंहके मनमें एक बार श्रीलंकापर चढ़ाईकर उसे जीतनेका भूत सवार हो गया। एक तो राजपूत, दूसरे
एक साधुसे हजरत इब्राहीमने पूछा- ‘सच्चे साधुका लक्षण क्या है?’ साधुने उत्तर दिया- ‘मिला तो खा लिया, न मिला तो
कवि श्रीपतिजी निर्धन ब्राह्मण थे, पर थे बड़े तपस्वी, धर्मपरायण, निर्भीक भगवद्धक भगवान्में आपका पूर्ण विश्वास था। आप भिक्षा माँगकर