जीव भगवान् का अंश है ।

IMG

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि एक बार सरल हृदय से दृढ़ता पूर्वक स्वीकार कर लें । मतलब क्या हुआ ? हैं वैसे ही । एक बार कहने का तात्पर्य है कि केवल ध्यान दे लो । पहले हैं, ज्यों के त्यों हैं । हुआ कुछ नहीं है, केवल जड़ को अपना मान लिया, यही गलती की है । तो दृढ़ता पूर्वक स्वीकार कर लें कि मैं परमात्मा का ही हूं और केवल परमात्मा ही मेरे हैं । आप परमात्मा के अंश हैं । परमात्मा अंशी हैं । केवल इतनी बात स्वीकार कर लो । शरीर किसी के साथ रहे नहीं, रहते नहीं और रहेंगे नहीं और रह सकते नहीं । और परमात्मा है, रहेंगे और दूर हो सकते ही नहीं । आप परमात्मा के हैं । स्वीकार कर लो बस । मैं परमात्मा का हूं और परमात्मा मेरे हैं । स्वीकार कर लो बस । शरीर साथ रहेगा ? संसार साथ रहेगा ? नासतो विद्यते भावो । असत् की सत्ता नहीं है और नाभावो विद्यते सत: । और सत् का अभाव नहीं है । भगवान् से प्रार्थना करो कि हे नाथ मैं आपका हूं । हरदम भजन, ध्यान तत्परता से करते रहो । भगवान् का ही चिंतन करो । भगवान् को ही याद करो । भगवान् में ही रहो, तो यह योग्यता आ जाएगी कि मैं भगवान् का ही हूं और भगवान् ही मेरे हैं ।

स्वीकार कर लो दृढ़ता से । मैं भगवान् का हूं भगवान् मेरे हैं, स्वीकार कर लिया तो बहुत अच्छा है । पूर्ण हो गया, पूर्ण । भगवान् के शरण होना और कुछ नहीं करना । मनुष्य जन्म सफल हो जाए । जिसके लिए यह मनुष्य शरीर मिला है, यह पूरा हो जाए । क्रिया की जगह विश्राम और पदार्थ की जगह भगवान् का आश्रय । मैं शरीर नहीं हूं, मैं परमात्मा का अंश हूं । क्रिया और पदार्थ सब प्रकृति का है । शरीरस्थोsपि कौंतेय…… । शरीर में स्थित होता हुआ भी न करोति, न लिप्यते। सच्ची बात है । स्वीकार कर ले । दृढ़ता पूर्वक स्वीकार कर ले और कर लिया तो बहुत अच्छी बात है । अब जप करो, ध्यान करो, स्वाध्याय करो । भगवान् का चिंतन करो । सब अधिकारी हैं, सब स्वतंत्र हैं, सब स्वतंत्र हैं । छोटे बड़े सब । हिंदू हो, मुसलमान हो, इसाई हो, सब के सब परम स्वतंत्र हैं । सबल, योग्य और अधिकारी हैं । अवसर बहुत बढ़िया मिला है । अवसर है, मौका है, बहुत सुंदर मौका मिला है, बहुत बढ़िया । निर्ममो निरहंकार : । जो वस्तु प्राप्त नहीं है, उसकी कामना छोड़ दो । जो प्राप्त है उसकी ममता छोड़ दो । जड़ चीज की कामना होती है । अभेद भाव में “मैं हूं” । भेदभाव में मेरा है । यह छोड़ दो । निर्ममो निरहंकार:, क्योंकि स्वरूप में अहंकार है नहीं । स्वरूप चिन्मय सत्ता रूप है । सत्ता में कोई कामना नहीं । पूर्ण हो गया । ऐसा ब्राह्मी स्थिति । अंतकाल में भी हो जाए तो ब्राह्मी स्थिति । और मुक्ति है । शरीरस्थोsपि कौंतेय…… । कर्ता पन नहीं है । इसे स्वीकार ही नहीं करना है । यह छूटा हुआ है । मुक्ति पैदा नहीं होती, पैदा होने वाली नाश हो जाती है । सबके लिए, हम भगवान् के, भगवान हमारे हैं ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *