अडिग निश्चय – सफलताकी कुंजी
राष्ट्रिय स्वयंसेवक सङ्घके मूल संस्थापक स्वनामधन्य डॉक्टर श्रीकेशवराव बलिराम हेडगेवार किसी कारणवश एक बार शनिवारके दिन कुछ साथियोंको लेकर अड़े
राष्ट्रिय स्वयंसेवक सङ्घके मूल संस्थापक स्वनामधन्य डॉक्टर श्रीकेशवराव बलिराम हेडगेवार किसी कारणवश एक बार शनिवारके दिन कुछ साथियोंको लेकर अड़े
ऋषियोंके प्रति उपहासपूर्ण व्यवहारका फल एक समयकी बात है-महर्षि विश्वामित्र, कण्व और तपोधन नारदजी द्वारकामें गये हुए थे। उन्हें देखकर
उन दिनों विद्यासागर ईश्वरचन्द्रजी बड़े आर्थिक संकटमें थे। उनपर ऋण हो गया था। यह ऋण भी हुआ था दूसरोंकी सहायता
बिल्वमङ्गलके पिताका श्राद्ध था। विवश होकर बिल्वमङ्गलको घर रहना पड़ा। जैसे-तैसे दिन बीता; क्या हुआ, कैसे हुआ – यह सब
वेरूलके निकट देवगाँवके आऊदेवकी कन्या बहिणाबाई और उसके पति गङ्गाधरराव पाठक पट्टीदारी के झगड़ेसे ऊबकर घर त्याग कोल्हापुरमें आकर बस
चन्दनका कोयला बनाते हम एक राजा वन-भ्रमणको गया। रास्ता भटककर, भूख-प्याससे व्याकुल हुआ वह एक लकड़हारे के झोंपड़ेपर पहुँचा। लकड़हारेने
श्रीचैतन्य महाप्रभु संन्यास लेकर जब श्रीजगन्नाथपुरीमें रहने लगे थे, तब वहाँ महाप्रभुके अनेक भक्त भी बंगालसे आकर रहते थे। महाप्रभुके
एक सदाचारिणी ब्राह्मणी थी, उसका नाम था जबाला उसका एक पुत्र था सत्यकाम। वह जब विद्याध्ययन करने योग्य हुआ, तब
भगवान् व्यास सभी जीवोंकी गति तथा भाषाको समझते हैं। एक बार जब वे कहीं जा रहे थे, तब रास्तेमें उन्होंने
एक बार भगवान् श्रीकृष्णने गरुडको यक्षराज कुबेरके सरोवरसे सौगन्धिक कमल लानेका आदेश दिया। गरुडको यह अहंकार तो था ही कि