सब सखियों ने मिलकर किशोरी जी और कान्हा के लिए सुंदर सी फूलों की सेज तैयार की हुई है और सब सखियां आज अपने प्रिया प्रियतम के लिए अलग-अलग व्यंजन बनाने के लिए गई हुई है। किशोरी जू ने अपने सर को कान्हा के कंधे पर रखा हुआ है आज दोनों ने अपनी आंखें मूंदी हुई है और आज वह दोनों ही बंद आंखों से निकुंज में अपनी ही लीला का आनंद ले रहे हैं ।आंखें बंद करके ठाकुर जी और किशोरी जी ने देखा कि वह दोनों निकुंज की कोमल घास पर एक दूसरे का हाथ पकड़ कर आराम से टहल रहे हैं तभी कुछ क्षण के लिए किशोरी जू एक स्थान पर रुक जाती है और अचानक से किशोरी जू कान्हा का हाथ छोड़कर नीचे की तरफ बैठ जाती है एकदम से किशोरी जी कान्हा का हाथ छोड़ती है तो कान्हा हैरान हो जाते हैं कि एकदम से लाड़ो नीचे की ओर क्यों बैठ गई है तभी उन्होंने देखा कि घास की पत्ती पर एक छोटा सा कीट बहुत ही धीमे स्वर से आह आह की ध्वनि निकाल रहा है तो किशोरी जी ने झट से उस कीट को अपने हाथ में पकड़ लिया वास्तव में वह कीट किशोरी जू के एकदम से रुकने से और उनके पांव में पड़े हुए मोटे-मोटे घुंघरू जो कि लाडली जू के पांव से थोड़ा लटके हुए थे निकुंज की घास पर पड़ा होने के कारण वह कीट मोटे से घुंघरू के नीचे आकर दब सा गया था वह कीट घुंघरू के नीचे दबे होने पर कष्ट सहने के बावजूद भी कोई आवाज जोर से नहीं कर रहा था बल्कि अपने आप को सौभाग्यशाली मान रहा था कि काश ऐसे ही अपनी प्रिया जू के घुंघरू के नीचे दबकर उसकी सांस निकल जाए क्योंकि वह सोच रहा था कि न जाने कौन से उस के कौन से जन्म के पुण्य कर्म जागृत हुए हैं जो कि एक तुच्छ कीट होने के बावजूद भी पहले तो उसको निकुंज में प्रवेश प्राप्ति हुई और उस से बड़ा सौभाग्य कि उसको श्री जू के चरणों में बंधे घुंघरू का स्पर्श और सानिध्य मिला। लेकिन ना जाने किशोरी जू को इस चीज का कैसे भान हो गया उन्होंने झट से उस कीट को पकड़ा और उनको प्यार से सहलाने लगी लेकिन वह कीट थोड़ा सा उदास था और हाथ जोड़कर किशोरी जू से प्रार्थना करने लगा हे किशोरी जू आपने मुझे इस अवस्था से क्यों उठाया निकलने देते मेरे प्राण। लेकिन प्यारी जू कुछ ना बोली और मुस्कुरा कर उसने उस कीट को एक वृक्ष के पत्ते पर रख दिया ।यह सब कन्हैया टेढ़ी नजर से देख रहे थे ।वह किशोरी जू और उसकी करूणा और दयालुता पर बलिहार जाने लगे और प्रसन्नता पूर्वक दृष्टि से किशोरी जू की तरफ देखने लगे कि इतने छोटे कीट की करुण पुकार भी किशोरी जू के कानों तक पहुंच गई जोकि बिल्कुल हल्की हल्की सी आह निकाल रहा था और सोच रहा था कि उसकी करुण क्रंदन किशोरी जू के सुकोमल कानों को तक न पहुंच सके लेकिन हमारी किशोरी जी तो बहुत करुणामई है वह तो सब की पुकार सुन लेती है चाहे वह बड़ा जीव हो या छोटा जीव। कान्हा को आज अपनी प्रिया पर बहुत ही प्यार आया। कान्हा ने अपने प्रिय राधिका को कंधे से पकड़ कर सीधा अपने सामने खड़ा कर लिया और सखियों द्वारा किए गए उत्तम शृंगार जिसमें किशोरी जी का रूप अलौकिक नजर आ रहा था उसको बड़े प्यार से देख रहे थे और सोच रहे थे किशोरी जी का जितना रूप सुंदर है उतना ही उनका मन भी सुंदर है। जब काफी देर तक कान्हा राधे जू को निहारते रहे तो लाडली जू थोड़ा सा झेंपती हुई बोली अरे लाल जू आज क्या हो गया तो कान्हा बोले लाडली जू मुझे करने दो अपने रूप रस का पान। ऐसा सुनकर किशोरी जू सोचने लगी ऐसा क्या है मुझ में जो लाल जू रोज मेरे रूप की प्रशंसा करते हैं तभी अचानक से ठाकुर जी ने देखा कि किशोरी जू के चेहरे के भाव जो कि अभी अभी अपनी प्रशंसा को सुनकर उनके सुंदर कपोल सुर्ख लाल रंग के हो रहे थे और साथ ही साथ उनके अधर भी कांप रहे थे अचानक से यह भाव बदल गए हैं उनके चेहरे पर कुछ शरारत के भाव है ठाकुर जी इतना सोच ही रहे थे तभी किशोरी जी ने ठाकुर जी को अपने सुकोमल हाथों से कंधे से पकड़कर एक जगह पर बिठा दिया और कहने लगी।
कान्हा आज तक तुम मेरे किए हुए श्रृंगार को देखकर प्रसन्न और मोहित होते रहते हो चलो आज मैं तुमको अपने जैसा श्रृंगार करूं क्योंकि किशोरी जू अक्सर सोचती थी कि मुझ में ऐसा क्या है जो लाल जू इतने प्यार से घंटों तक मुझ को निहारते रहते हैं आज मैं भी लालजू को अपने जैसा बना दूंगी । इससे पहले कि कन्हैया कुछ बोल पाते किशोरी जू ने लाल जू को पकड़कर एक जगह पर बिठा दिया और बड़े ही सुंदर तरीके से ठाकुर जी के घुंघराले बालों की छोटी सी वेणी बनाकर उस पर गजरा लगाया, गालों पर बहुत सारी लाली माथे पर टीका बहुत सारे गहने गले में हार माथे पर बिंदिया कानों में बड़े-बड़े झुमके और आंखों में मोटा मोटा काजल लगाकर अपने जैसे कटाक्ष नेत्र बना दिए। किशोरी जू ठाकुर जी का श्रृंगार करने में इतनी मग्न हो गई जब पूरी तरह श्रृंगार हो गया और ठाकुर जी को इस तरह अपने जैसा श्रृंगारित देखकर किशोरी जू स्तब्ध सी रह गई कि मेरा कान्हा इतना सुंदर अभी वह इतना सोच रही थी तभी लालजू ने पास पड़े दर्पण को उठाकर देखा तो वह हैरान से हो गए कि मैं दर्पण में खुद को देख रहा हूं या लाडली जू को । उन्होंने लाड़ो के दोनों हाथों को पकड़कर चूम लिया। लाडली जू खुद हैरान थी कि इस रूप में दुनिया में लाल जू जैसा कोई सुंदर ना होगा। और उधर कान्हा किशोरी का रुप पाकर अत्यंत हर्षित हो रहे थे और उनके किशोरी जी द्वारा बनाए गए कटाक्ष नेत्रों के किनारे से खुशी के मारे आंसू निकलने ही वाला था कि तभी लाडली जू को शरारत सूझी और उन्होंने ठाकुर जी की छोटी सी वेणी को जो कि फूलों के गजरे से सजी होने से अत्यंत शोभायमान हो रही थी उसको थोड़ा सा खींचते हुए और कान्हा को छेड़ते हुए बोली अरे “ओ सखी आज तो बलिहारी जाऊं तोरे रूप सौंदर्य पर “!
और यह कह कर ठाकुर जी की चोटी को खींचते हुए वहां से भाग गई और ठाकुर जी राधे जू की इस शरारत से जानबूझ कर खीझते हुए बोले रूको राधिके आज न छोडुगां तोहे।
ऐसा कह कर पीछे पीछे राधे जू को पकड़ने के लिए भागे निकुंज में कन्हैया राधा रानी के पीछे पीछे भाग रहे थे लेकिन ऐसा लग रहा था कि कान्हा नहीं बल्कि लाडली जू ही लाडली जू के पीछे भाग रही है क्योंकि राधा रानी ने कन्हैया का श्रृंगार बिल्कुल अपने जैसा ही किया था निकुंज में भागते भागते दोनों अठखेलियां करते हुए खूब हंस रहे थे।उन दोनों की हंसी की गूंज पूरे निकुंज में फैली हुई थी यह लीला तो ठाकुर जी और किशोरी जू अपनी आंखों से देख रहे थे वहां तो जोर-जोर से खिलखिला रहे थे लेकिन यहां बंद आंखों से वह केवल मुस्कुरा रहे थे और अचानक से दोनों की आंख खुली तो उन्होंने देखा कि उनके आसपास सभी सखियां आश्चर्यचकित होकर उनको देख रही है किशोरी जी और लाल जू तो सिर्फ मुस्कुरा रहे हैं लेकिन हंसी के ठहाके तो पूरे निकुंज में गूंज रहे हैं अपने सामने सखियों और मोर ,पपीहा ,कोयल को देखकर ठाकुर जी की और राधा रानी थोड़े सकपका से गए । सब सखियां अपनी भृकुटी को टेढ़ी करके और प्रश्न सूचक दृष्टि से देखते हुए और हाथों को हिलाते हुए बोली यह कैसी लीला है जिसका आंनद आप दोनों ही ले रहे हो लेकिन किशोरी जू कुछ ना बोली और झेंपती हुई लाल जू के सीने में लगकर अपनी लज्जा को जैसे छुपाने लगी ।तो सब सखियां ने मिलकर किशोरी जू और लाल जु को खींचकर निकुंज के बीच में लाकर खड़ा कर दिया और उनके चारों तरफ गोल गोल घूमने लगी ।पहले तो निकुंज में खड़े मोर, पपीहा, कोयल स्तब्ध थे यह सब क्या हो रहा है लेकिन जब उन्होंने सब सखियों और अपने प्रिया प्रियतम को निकुंज में झूमते देखा तो उनको थोड़ा सा होश आया तो वह भी अपनी अपनी कुहू कुहू पीहू पीहू की आवाज निकाल कर अपनी प्रसन्नता को झूम झूम कर प्रगट करने लगे और निकुंज में अब चारों और बहुत आनंद का वातावरण बन गया।
निकुंज की इस लीला का वर्णन करते करते सुरभि दासी भी अत्यंत आनंदित हो रही है ।इसलिए आप भी इसलीला का आनंद लें और अपने आप को सौभाग्यशाली माने।
बोलो लाडली लाल जू की जय हो।
सब सखियों ने मिलकर किशोरी जी और कान्हा के लिए सुंदर सी फूलों की सेज तैयार की हुई है और सब सखियां आज अपने प्रिया प्रियतम के लिए अलग-अलग व्यंजन बनाने के लिए गई हुई है। किशोरी जू ने अपने सर को कान्हा के कंधे पर रखा हुआ है आज दोनों ने अपनी आंखें मूंदी हुई है और आज वह दोनों ही बंद आंखों से निकुंज में अपनी ही लीला का आनंद ले रहे हैं ।आंखें बंद करके ठाकुर जी और किशोरी जी ने देखा कि वह दोनों निकुंज की कोमल घास पर एक दूसरे का हाथ पकड़ कर आराम से टहल रहे हैं तभी कुछ क्षण के लिए किशोरी जू एक स्थान पर रुक जाती है और अचानक से किशोरी जू कान्हा का हाथ छोड़कर नीचे की तरफ बैठ जाती है एकदम से किशोरी जी कान्हा का हाथ छोड़ती है तो कान्हा हैरान हो जाते हैं कि एकदम से लाड़ो नीचे की ओर क्यों बैठ गई है तभी उन्होंने देखा कि घास की पत्ती पर एक छोटा सा कीट बहुत ही धीमे स्वर से आह आह की ध्वनि निकाल रहा है तो किशोरी जी ने झट से उस कीट को अपने हाथ में पकड़ लिया वास्तव में वह कीट किशोरी जू के एकदम से रुकने से और उनके पांव में पड़े हुए मोटे-मोटे घुंघरू जो कि लाडली जू के पांव से थोड़ा लटके हुए थे निकुंज की घास पर पड़ा होने के कारण वह कीट मोटे से घुंघरू के नीचे आकर दब सा गया था वह कीट घुंघरू के नीचे दबे होने पर कष्ट सहने के बावजूद भी कोई आवाज जोर से नहीं कर रहा था बल्कि अपने आप को सौभाग्यशाली मान रहा था कि काश ऐसे ही अपनी प्रिया जू के घुंघरू के नीचे दबकर उसकी सांस निकल जाए क्योंकि वह सोच रहा था कि न जाने कौन से उस के कौन से जन्म के पुण्य कर्म जागृत हुए हैं जो कि एक तुच्छ कीट होने के बावजूद भी पहले तो उसको निकुंज में प्रवेश प्राप्ति हुई और उस से बड़ा सौभाग्य कि उसको श्री जू के चरणों में बंधे घुंघरू का स्पर्श और सानिध्य मिला। लेकिन ना जाने किशोरी जू को इस चीज का कैसे भान हो गया उन्होंने झट से उस कीट को पकड़ा और उनको प्यार से सहलाने लगी लेकिन वह कीट थोड़ा सा उदास था और हाथ जोड़कर किशोरी जू से प्रार्थना करने लगा हे किशोरी जू आपने मुझे इस अवस्था से क्यों उठाया निकलने देते मेरे प्राण। लेकिन प्यारी जू कुछ ना बोली और मुस्कुरा कर उसने उस कीट को एक वृक्ष के पत्ते पर रख दिया ।यह सब कन्हैया टेढ़ी नजर से देख रहे थे ।वह किशोरी जू और उसकी करूणा और दयालुता पर बलिहार जाने लगे और प्रसन्नता पूर्वक दृष्टि से किशोरी जू की तरफ देखने लगे कि इतने छोटे कीट की करुण पुकार भी किशोरी जू के कानों तक पहुंच गई जोकि बिल्कुल हल्की हल्की सी आह निकाल रहा था और सोच रहा था कि उसकी करुण क्रंदन किशोरी जू के सुकोमल कानों को तक न पहुंच सके लेकिन हमारी किशोरी जी तो बहुत करुणामई है वह तो सब की पुकार सुन लेती है चाहे वह बड़ा जीव हो या छोटा जीव। कान्हा को आज अपनी प्रिया पर बहुत ही प्यार आया। कान्हा ने अपने प्रिय राधिका को कंधे से पकड़ कर सीधा अपने सामने खड़ा कर लिया और सखियों द्वारा किए गए उत्तम शृंगार जिसमें किशोरी जी का रूप अलौकिक नजर आ रहा था उसको बड़े प्यार से देख रहे थे और सोच रहे थे किशोरी जी का जितना रूप सुंदर है उतना ही उनका मन भी सुंदर है। जब काफी देर तक कान्हा राधे जू को निहारते रहे तो लाडली जू थोड़ा सा झेंपती हुई बोली अरे लाल जू आज क्या हो गया तो कान्हा बोले लाडली जू मुझे करने दो अपने रूप रस का पान। ऐसा सुनकर किशोरी जू सोचने लगी ऐसा क्या है मुझ में जो लाल जू रोज मेरे रूप की प्रशंसा करते हैं तभी अचानक से ठाकुर जी ने देखा कि किशोरी जू के चेहरे के भाव जो कि अभी अभी अपनी प्रशंसा को सुनकर उनके सुंदर कपोल सुर्ख लाल रंग के हो रहे थे और साथ ही साथ उनके अधर भी कांप रहे थे अचानक से यह भाव बदल गए हैं उनके चेहरे पर कुछ शरारत के भाव है ठाकुर जी इतना सोच ही रहे थे तभी किशोरी जी ने ठाकुर जी को अपने सुकोमल हाथों से कंधे से पकड़कर एक जगह पर बिठा दिया और कहने लगी।
कान्हा आज तक तुम मेरे किए हुए श्रृंगार को देखकर प्रसन्न और मोहित होते रहते हो चलो आज मैं तुमको अपने जैसा श्रृंगार करूं क्योंकि किशोरी जू अक्सर सोचती थी कि मुझ में ऐसा क्या है जो लाल जू इतने प्यार से घंटों तक मुझ को निहारते रहते हैं आज मैं भी लालजू को अपने जैसा बना दूंगी । इससे पहले कि कन्हैया कुछ बोल पाते किशोरी जू ने लाल जू को पकड़कर एक जगह पर बिठा दिया और बड़े ही सुंदर तरीके से ठाकुर जी के घुंघराले बालों की छोटी सी वेणी बनाकर उस पर गजरा लगाया, गालों पर बहुत सारी लाली माथे पर टीका बहुत सारे गहने गले में हार माथे पर बिंदिया कानों में बड़े-बड़े झुमके और आंखों में मोटा मोटा काजल लगाकर अपने जैसे कटाक्ष नेत्र बना दिए। किशोरी जू ठाकुर जी का श्रृंगार करने में इतनी मग्न हो गई जब पूरी तरह श्रृंगार हो गया और ठाकुर जी को इस तरह अपने जैसा श्रृंगारित देखकर किशोरी जू स्तब्ध सी रह गई कि मेरा कान्हा इतना सुंदर अभी वह इतना सोच रही थी तभी लालजू ने पास पड़े दर्पण को उठाकर देखा तो वह हैरान से हो गए कि मैं दर्पण में खुद को देख रहा हूं या लाडली जू को । उन्होंने लाड़ो के दोनों हाथों को पकड़कर चूम लिया। लाडली जू खुद हैरान थी कि इस रूप में दुनिया में लाल जू जैसा कोई सुंदर ना होगा। और उधर कान्हा किशोरी का रुप पाकर अत्यंत हर्षित हो रहे थे और उनके किशोरी जी द्वारा बनाए गए कटाक्ष नेत्रों के किनारे से खुशी के मारे आंसू निकलने ही वाला था कि तभी लाडली जू को शरारत सूझी और उन्होंने ठाकुर जी की छोटी सी वेणी को जो कि फूलों के गजरे से सजी होने से अत्यंत शोभायमान हो रही थी उसको थोड़ा सा खींचते हुए और कान्हा को छेड़ते हुए बोली अरे “ओ सखी आज तो बलिहारी जाऊं तोरे रूप सौंदर्य पर “!
और यह कह कर ठाकुर जी की चोटी को खींचते हुए वहां से भाग गई और ठाकुर जी राधे जू की इस शरारत से जानबूझ कर खीझते हुए बोले रूको राधिके आज न छोडुगां तोहे।
ऐसा कह कर पीछे पीछे राधे जू को पकड़ने के लिए भागे निकुंज में कन्हैया राधा रानी के पीछे पीछे भाग रहे थे लेकिन ऐसा लग रहा था कि कान्हा नहीं बल्कि लाडली जू ही लाडली जू के पीछे भाग रही है क्योंकि राधा रानी ने कन्हैया का श्रृंगार बिल्कुल अपने जैसा ही किया था निकुंज में भागते भागते दोनों अठखेलियां करते हुए खूब हंस रहे थे।उन दोनों की हंसी की गूंज पूरे निकुंज में फैली हुई थी यह लीला तो ठाकुर जी और किशोरी जू अपनी आंखों से देख रहे थे वहां तो जोर-जोर से खिलखिला रहे थे लेकिन यहां बंद आंखों से वह केवल मुस्कुरा रहे थे और अचानक से दोनों की आंख खुली तो उन्होंने देखा कि उनके आसपास सभी सखियां आश्चर्यचकित होकर उनको देख रही है किशोरी जी और लाल जू तो सिर्फ मुस्कुरा रहे हैं लेकिन हंसी के ठहाके तो पूरे निकुंज में गूंज रहे हैं अपने सामने सखियों और मोर ,पपीहा ,कोयल को देखकर ठाकुर जी की और राधा रानी थोड़े सकपका से गए । सब सखियां अपनी भृकुटी को टेढ़ी करके और प्रश्न सूचक दृष्टि से देखते हुए और हाथों को हिलाते हुए बोली यह कैसी लीला है जिसका आंनद आप दोनों ही ले रहे हो लेकिन किशोरी जू कुछ ना बोली और झेंपती हुई लाल जू के सीने में लगकर अपनी लज्जा को जैसे छुपाने लगी ।तो सब सखियां ने मिलकर किशोरी जू और लाल जु को खींचकर निकुंज के बीच में लाकर खड़ा कर दिया और उनके चारों तरफ गोल गोल घूमने लगी ।पहले तो निकुंज में खड़े मोर, पपीहा, कोयल स्तब्ध थे यह सब क्या हो रहा है लेकिन जब उन्होंने सब सखियों और अपने प्रिया प्रियतम को निकुंज में झूमते देखा तो उनको थोड़ा सा होश आया तो वह भी अपनी अपनी कुहू कुहू पीहू पीहू की आवाज निकाल कर अपनी प्रसन्नता को झूम झूम कर प्रगट करने लगे और निकुंज में अब चारों और बहुत आनंद का वातावरण बन गया।
निकुंज की इस लीला का वर्णन करते करते सुरभि दासी भी अत्यंत आनंदित हो रही है ।इसलिए आप भी इसलीला का आनंद लें और अपने आप को सौभाग्यशाली माने।
बोलो लाडली लाल जू की जय हो।