मृग तृष्णा है दुनिया दारी कब तक भागे गा प्राणी
भीतर ही तेरे वो रब है कब तू जागे गा प्राणी
सुख में भी अब सुख नही मिलता सुविधा में आराम नही
मुख में राम का नाम है लेकिन मन में कही भी राम नही
लोग मोह को काम क्रोध को कब तू त्यागे गा प्राणी
मृग तृष्णा है दुनिया दारी कब तक भागे गा प्राणी
हर सपना साकार न होगा इतनी बात समज ले तू
ये उल्जन आसान न होगी
चाहे लाख उलज ले तू
बस वो ही तुझको ना मिले गा जो तू मांगे गा प्राणी
मृग तृष्णा है दुनिया दारी कब तक भागे गा प्राणी
दुनिया पर इतरा न साहिल अखिर गावह लगाये गी
मरहम जब तू चाहे गा तब नामक भाव बताये गी
दिल को तेरे जगत हमेशा यु ही धागे का प्राणी
मृग तृष्णा है दुनिया दारी कब तक भागे गा प्राणी
The deer has a craving for how long the creature has run away from the world
Within you is your Lord, when will you wake up
Now there is no happiness even in happiness, there is no comfort in convenience
Ram’s name is there in the mouth but there is no Ram anywhere in the mind.
When will you give up lust to anger?
The deer has a craving for how long the creature has run away from the world
Every dream will not come true, you understand so much
This mess won’t be easy
Whether you take a million confusion
You will not get only what you ask for.
The deer has a craving for how long the creature has run away from the world
Sahil Akhir will not be proud of the world
When you want to sing the ointment, I will tell you the name
Your world is always a creature of thread to your heart
The deer has a craving for how long the creature has run away from the world