भगवन्नाम के निरंतर जप का मानव शरीर पर कितना अद्भुत प्रभाव होता है, यही दर्शाती विभिन्न भक्तों के जीवन की कथाएं।
शब्द में बड़ी प्रबल शक्ति होती है । निरन्तर भगवन्नाम जप से मन की शुद्धि होती है, विवेक जाग्रत होता है । इससे हम अंदर से एक गुप्त दैवीय शक्ति का अनुभव करते हैं—मानो हम अपने आराध्य से जुड़ रहे हैं। यहीं से आशा, साहस, उत्साह और सफलता का आध्यात्मिक प्रवाह हमारे अंदर प्रवाहित होने लगता है; जिसके कारण हमारी चिन्ताएं, व्याकुलताएं, रोग-शोक और दुर्बलताएं नष्ट हो जाती हैं।
भगवन्नाम का आश्रय लेने से सांसारिक सुख दु:ख व मान अपमान का असर मन पर नहीं होता है। यही आध्यात्मिक उन्नति धीरे धीरे हमें स्वास्थ्य, सुख, शान्ति और संतुलन की ओर ले जाती है।
भगवन्नाम जप का मानव शरीर पर सकारात्मक प्रभाव!
निरन्तर नाम-जप करने से भी मनुष्य का शरीर व मन कभी श्रान्त नहीं होते, अवसाद (depression), चिन्ता (anxiety) उनसे कोसों दूर रहती है । मन सदैव प्रफुल्लित रहता है, उनका ललाट एक अद्वितीय तेज से चमकता रहता है । आवाज में गाम्भीर्य और मधुरता आ जाती है । भगवान (इष्ट) के दिव्य गुण उनके जीवन में प्रवेश करने लगते हैं ।
जितना अधिक भगवन्नाम जप किया जायेगा उतना ही अधिक शरीर के परमाणु (cells) मन्त्राकार हो जाते हैं । इस बात को भक्तों के जीवन-चरित्र का वर्णन करके सिद्ध किया जा सकता
भगवान विट्ठल के भक्त चोखामेला निम्न जाति के होने के कारण मन्दिर के अंदर नहीं जाते थे। बाहर से ही दर्शन करते थे। उनकी भक्ति से अभिभूत होकर भगवान को जब उन्हें देखने की इच्छा होती थी, तब भगवान विट्ठलनाथ स्वयं बाहर आ जाते थे। आज भी पण्ढरपुर में मन्दिर के बाहर उनका स्थान है।
एक बार मजदूरों के साथ काम करते करते आठ दस मजदूरों के साथ चोखामेला की मृत्यु हो गयी। भगवान पण्ढरीनाथ की आंखों से अश्रुधारा बह निकली।
भगवान ने संत नामदेवजी को प्रेरणा दी भक्त चोखामेला की हड्डियों को एकत्रित करो।’
नामदेव जी संशय में पढ़ गये कि इतनी सारी हड्डियों में भक्त चोखामेला की हड्डियां कौन-सी हैं ? तब भगवान ने उन्हें प्रेरणा दी कि ‘जिस हड्डी से ‘विट्ठल’ ‘विट्ठल’ की ध्वनि निकलती हो उन हड्डियों को एकत्रित कर लेना।’
नामदेव जी ने जब हड्डियों को कान लगा कर सुना तो चोखामेला की हड्डियों से ‘विट्ठल’ ‘विट्ठल’ की ध्वनि सुनाई पड़ती थी।
*भक्त जनाबाई!
_ऐसा ही किस्सा भक्त जनाबाई का है । एक बार संत कबीर जनाबाई का दर्शन करने पण्ढरपुर गये। वहां उन्होंने देखा कि दो स्त्रियां गोबर के उपलों के लिए लड़ रही थीं । कबीरदास जी वहीं खड़े होकर देखने लगे । उन्होंने एक महिला से पूछा—‘आप कौन हैं ?’_
_महिला ने उत्तर दिया—‘मेरा नाम जनाबाई है।’_
_कबीरदास जी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि हम तो परम-भक्त जनाबाई का नाम सुनकर उसके दर्शन के लिए आये थे और ये तो गोबर से बने उपलों के लिए झगड़ रही है।_
_उन्होंने जनाबाई से पूछा‘आपको अपने उपलों की कोई पहचान है ?’
जनाबाई ने उत्तर दिया ‘जिन उपलों से ‘विट्ठल’ ‘विट्ठल’ की ध्वनि निकलती हो, वे हमारे हैं।’
कबीरदासजी ने उन उपलों को अपने कान के पास लगा कर देखा तो उन्हें ‘विट्ठल’ की ध्वनि सुनाई पड़ती थी। कबीर दास जी जनाबाई की भगवन्नाम जप की शक्ति को देखकर दंग रह गये।*_
*श्रीब्रह्मचैतन्य महाराज!!!!!!!!*
_दक्षिण भारत में एक ब्रह्मचैतन्य महाराज थे। वे सबको ‘राम-नाम’ जपने का उपदेश करते थे । किसी ने उनसे पूछा—‘आपके और हमारे जप में क्या अंतर है ?’_
_उन्होंने कहा—‘तुम आज रात बारह बजे मेरे पास आना ।’_
_ब्रह्मचैतन्यजी रात्रि में बारह बजे भजन के लिए बैठते थे । जब वह व्यक्ति ब्रह्मचैतन्य महाराज के पास आया तो उन्होंने उससे कहा—‘तुम मेरे अंगूठे से लेकर मस्तक तक कहीं भी कान लगाकर देखो ।’_
जब उस व्यक्ति ने कान लगाकर सुना तो उनके रोम रोम से ‘श्रीराम श्रीराम’ की ध्वनि निकल रही थी।
यह है भगवान के अखण्ड नाम जप की महिमा जो हमें ईश्वरत्व के समीप ले दाता है।
भगवन्नाम जप का केवल मानव शरीर पर ही प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि वनस्पति जगत भी इससे प्रभावित होता है।
तुलसीदास जी ने जब व्रजभूमि में प्रवास किया तो उन्होंने अनुभव किया कि व्रजभूमि में रहने वाले संत-भक्तों के सांनिध्य में वहां के वृक्ष व लताओं से भी ‘राधेश्याम’ की ध्वनि निकलती है!!!
वृन्दावन के वृक्ष को मरम न जाने रोय।
ढार-ढार अरु पात-पात में, राधे-राधे होय।।
राधा कृष्ण सबै कहत, आक-ढाक अरु कैर।
तुलसी या व्रजभूमि में कहा सियाराम सों बैर।।
श्रीरामचरितमानस में हनुमानजी भगवान श्रीराम को सीताजी का संदेश सुनाते हुए कहते है!!
नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट ।
लोचन निज पद जंत्रित प्रान जाहिं केहिं बाट ।।
सीताजी ने कहा है कि उनके प्राण कैद हो गये हैं । आठों प्रहर आपके ध्यान के किंवाड़ लगे रहते हैं अर्थात् आपका ध्यान कभी छूटता नहीं, आपकी श्यामल-माधुरी मूर्ति कभी मन के नेत्रों से परे होती ही नहीं । यदि कभी किंवाड़ खोले भी जाएं (ध्यान छूट भी जाएं) तो बाहर रात-दिन पहरा लगता है । पहरेदार है आपका ‘राम-नाम’ । क्षण भर के लिए भी जिह्वा ‘राम-नाम’ से विराम नहीं लेती है । ऐसी स्थिति में आपके वियोग में भी प्राण बाहर कैसे निकलें ?
श्रीचैतन्यमहाप्रभु अपने ‘शिक्षाष्टक’ में कहते हैं–‘श्रीकृष्ण के नाम और गुणों का कीर्तन चित्तरूपी दर्पण को साफ कर देता है, और आत्मा को शान्ति और आनन्द की धारा में स्नान करा देता है ।’
The stories of the lives of various devotees depict the wonderful effect of continuous chanting of the Lord’s name on the human body. There is great power in words. Continuous chanting of the Lord’s name purifies the mind, awakens the conscience. With this we experience a hidden divine power from within—as if we are connecting with our adoration. It is from here that the spiritual stream of hope, courage, enthusiasm and success begins to flow in us; Due to which our worries, anxieties, diseases and sorrows are destroyed.
By taking shelter of God’s name, the effect of worldly pleasures, sorrows and insults does not affect the mind. This spiritual progress gradually leads us to health, happiness, peace and balance.
Positive effect of chanting God’s name on the human body!
Man’s body and mind never get tired even by chanting the name continuously, depression, anxiety remains far away from them. The mind is always cheerful, his forehead shining with a unique brilliance. There is seriousness and sweetness in the voice. The transcendental qualities of the Lord (Ishta) begin to enter their lives.
The more the Lord’s name is chanted, the more the cells of the body become mantra. This can be proved by describing the life-character of the devotees.
Chokhamela, a devotee of Lord Vitthal, did not go inside the temple as he belonged to a low caste. He used to see from outside. Overwhelmed by his devotion, when the Lord wished to see him, Lord Vitthalnath himself used to come out. Even today his place is outside the temple in Pandharpur.
Once while working with the laborers, Chokhamela died along with eight to ten laborers. Tears flowed from the eyes of Lord Pandharinath.
God inspired Saint Namdevji to collect the bones of devotee Chokhamela.
Namdev ji read in doubt that out of so many bones, which are the bones of devotee Chokhamela? Then God inspired him to collect those bones ‘from which the sound of ‘Vitthal’ ‘Vitthal’ emanates.’
When Namdev ji listened to the bones by ear, the sound of ‘Vitthal’ ‘Vitthal’ could be heard from the bones of Chokhamela.
* Bhakta Janabai!
A similar story is of the devotee Janabai. Once Saint Kabir went to Pandharpur to see Janabai. There he saw two women fighting for cow dung cakes. Kabirdas ji stood there and started watching. He asked a woman- ‘Who are you?’
_The lady replied- ‘My name is Janabai.’_
_Kabirdas ji was very surprised that after hearing the name of the supreme devotee Janabai, we had come to have his darshan and she is fighting over cow dung cakes.
He asked Janabai ‘Do you have any identity of your products?’
Janabai replied, ‘The fruits from which the sound of ‘Vitthal’ ‘Vitthal’ emanates, they are ours.’ When Kabir Dasji saw those puddings near his ear, he could hear the sound of ‘Vitthal’. Kabir Das ji was stunned to see the power of Janabai’s chanting of God’s name.*_
*Sri Brahma Chaitanya Maharaj!!!!!!!!*
There was a Brahma Chaitanya Maharaj in South India. He used to exhort everyone to chant ‘Ram-Naam’. Someone asked him- ‘What is the difference between you and our chanting?’
_He said- ‘You come to me tonight at twelve o’clock.’_
Brahma Chaitanya used to sit at twelve o’clock in the night for bhajans. When that person came to Brahma Chaitanya Maharaj, he said to him- ‘You can look with your ears anywhere from my thumb to my head’.
When that person listened with his ears, the sound of ‘Shri Ram Shri Ram’ was coming out of his hair.
This is the glory of chanting the eternal name of God, which brings us closer to Godhead.
The chanting of Bhagavannam does not only affect the human body, but the plant world is also affected by it.
When Tulsidas ji stayed in Vrajbhoomi, he realized that the sound of ‘Radheshyam’ also comes out from the trees and vines there in the company of saint-devotees living in Vrajbhoomi!!!
Cry not knowing the death of the Vrindavan tree. Radhe-radhe hoy, Radhe-radhe hoy Radha Krishna sabai kahat, aak-dhak aru kair. Said in Tulsi or Vrajbhoomi, Siyaram Son Bair.
Naam Paharu Divas Nisi Dhyan Your doors. Lochan nij pad jantrit pran jahan kehin weight..
Sitaji has said that her life has been imprisoned. The doors of your meditation are kept on the eight prahars, that is, your meditation never leaves, your Shyamal-Madhuri idol is never beyond the eyes of the mind. Even if the doors are ever opened (even if attention is lost), it is guarded night and day outside. The watchman is your ‘Ram-Nam’. Even for a moment the tongue does not take a break from ‘Ram-naam’. In such a situation, how can you get out of life even in your disconnection?
Sri Caitanya Mahaprabhu says in his ‘Shikshaashtak’ – ‘The chanting of the name and qualities of Sri Krishna clears the mirror of the mind, and bathes the soul in the stream of peace and bliss.’