बिना मथले न निकली रतन हीरा
ध्रुव जी मथले प्रह्लाद जी मथले
नारद जी मथले बजाय विना,
बिना मथले न निकली,
काठ के मथनियाँ से दहिया मथाला,
ज्ञान के मथनियाँ चलेला धीरा,
बिना मथले न निकली,
कहत कबीर सुन ए भाई साधो,
ए जीवन के मिट्टी अनमोल हीरा,
बिना मथले न निकली,
[Hemkant jha प्यासा
Rattan diamond did not come out without churning
Dhruv Ji Mathle Prahlad Ji Mathle
Narad ji without mathle,
Do not leave without churning
From wooden chutneys to Dahiya Mathala,
The churns of knowledge went on slowly,
Do not leave without churning
Listen to Kabir say, brother, sadho,
A precious diamond of the soil of life,
Do not leave without churning
[Hemkant jha thirsty