भक्त चार बजे उठता है उठते ही भगवान का चिन्तन मनन दिल ही दिल में करता है भक्त भगवान का ध्यान माला जप कर मुर्ति के सामने धुप दीप जला कर या आरती करके जो पुजा करता है। वह समय सीमा पर निर्धारित पुजा हैं।
भक्त के दिल का एक ही अरमान होता है मेरे प्रभु प्राण नाथ को हर क्षण ध्यान धरता रहू। बैठ कर किया गया ध्यान भी एक दो घंटे का है। प्रभु प्राण नाथ के प्रेम में भक्त हर समय लीन है।
प्रेम में लीन होने के लिए बाहरी चीज की आवश्यकता नहीं है। प्रेम में दिल का समर्पित भाव है प्रेम में अन्तःकरण हैं। क्योंकि वह एक गृहस्थ है। वह भगवान से अन्तः करण में गहरा डुबा हुआ है भगवान को अन्तर्मन से नमन वन्दन प्रणाम करता है ।
शिश नवा कर भगवान के सामने नतमस्तक हो जाता है। बैड पर बैठे हुए भगवान से प्रार्थना करता है हे प्रभु प्राण हे जीवन जगत की ज्योति मेरे स्वामी क्या कभी दर्शन होगे कभी हाथ जोड़कर प्रणाम करता है
दिल ही दिल में भगवान से प्रार्थना कर रहा है। अन्तर्मन की प्रार्थना को पुरण शब्द रूप नहीं दे सकती हूं। भक्त भगवान का चलते फिरते हुए घर के कार्य करते हुए ध्यान धर रहा है। तभी ऐसे अहसास होता है
ध्यान में आज बाल्मीकि ऋषि आए हैं। ऋषि मुनि आऐ है सन्त और महात्मा आए हैं।भगवान आए हैं भक्त मानसिक रूप से ऋषि मुनियों के चरणो की सेवा कर रहा है
ऋषि मुनि घर का कार्य करते हुए दिखाई दे रहे हैं। गृहस्थ वैसे ही घर के सब कार्य निभाते हुए अन्तर हृदय से भगवान श्री हरि की प्रार्थना करता है
बाल्मीकि ऋषि के आगमन पर सबकुछ प्रभु रूप हो जाता है हर किरया भगवान की किरया बन जाती है। भक्त स्नान करता है।तब ऐसा प्रतीत होता है मानो ऋषि मुनिओं के चरणो को पखार रही हूं।
दिल की धड़कन तेज हो जाती है भगवान से प्रार्थना करती हे भगवान नाथ पृथ्वी पर शान्ति समा जाए है। हे प्रभु भगवान तब अहसास होता है
भगवान कर रहे ये सब परम पिता परमात्मा है फिर दिपक जला कर दिपक में भगवान का अहसास चलते हुए ऐसा प्रतीत होता है मानो भगवान चल रहे हैं अन्तर्मन से भगवान के चरणो में ध्यान गहरा हो जाता है फिर प्रार्थना करती हे प्रभु प्राण नाथ हे सांवरे सरकार हे दीनानाथ हे दीनदयाल हे दीनबंधु हे कृपासिन्धो हे भगवान मुझ दासी की विनती यही आज प्राणी मन के द्वार पर बैठा भटक रहा है। हे नाथ उनके दिल के द्वार खोल देना। फिर भक्त बार बार नमन करता है वन्दन करता है भगवान से प्रार्थना करता है।
हे परम पिता परमात्मा इस आनंद से दीन दुखिया की सेवा हो जाए। राम राम राम राम जय श्री राम जय श्री राम यह सब मानसिक प्रार्थना है जिसमें भक्त अन्तर्मन से परम पिता परमात्मा की वन्दना करता है।जय श्री राम अनीता गर्ग