अब साई छतर की छाया में ,
थक हार के आ बैठे है,
अब धुप की अगनि कुछ भी नहीं एक पेड़ तले जा बैठे है,
जिस दिन से दिया हर पल अपना सत्संगत में सत्सेवा में,
इस भाव के बदले साई से हम कितना कुछ पा बैठे है,
अब साई छतर की छाया में ..
एह काश जरा दम भर के लिए सब इन चरनन में आ जाते,
वो लोग जो अपने जीवन के दुःख दर्द से गबरा बैठे है,
अब साई छतर की छाया में ..
अब हाथ पकड़ कर पार कर खुद साई अपने हाथो से,
हम उनकी बदौलत कश्ती को साहिल तक तो ला बैठे है,
अब साई छतर की छाया में …..
जब शांत हुई है मन भटी फिर क्यों उठे इस महफ़िल से,
साई की नायक पर रख कर हम पूरा भरोसा बैठे है,
अब साई छतर की छाया में थ
Now in the shadow of Sai Chhatra,
Tired of giving up,
Now the fire of incense is nothing but sitting under a tree,
From the day he gave every moment in his satsangat in satseva,
In exchange for this feeling, how much have we got from Sai,
Now in the shadow of Sai Chhatar..
Eh I wish everyone could come to these stages for a moment,
Those people who are suffering from the pain of their life,
Now in the shadow of Sai Chhatar..
Now crossing by holding hands, Sai himself with his own hands,
We have brought the kayak to Sahil because of him,
Now in the shadow of Sai Chhatar.
When the mind has become calm, then why did you get up from this gathering,
We have full faith in Sai’s hero.
Now in the shadow of Sai Chhatra