हे दीनबन्धु शरण हूँ तुम्हारी,
खबर लो हमारी,
ये माना के गलती हम से हुई है भुलाया है तुझको,
अपने पराये का भेद ना जाना माफ़ करो हमको,
आखिर तो गम में याद किया है तुम को मुरारी,
हे दीनबन्धु शरण हूँ तुम्हारी…
दीनों के नाथ तुम ने दुखियाँ कोई हो गले से लगाया,
गोद में बिठा के उसके आंसू को पौंछा थोड़ा थप थपाया,
करूणा के सिंधु इधर भी नजर कर मैं कब का दुखारी,
हे दीनबन्धु …
हमने सुना है कान्हा तेरी खुदाई का जोड़ नहीं है,
जाये कहा हम कान्हा तेरे सिवा को थोर नहीं है,
दो बूंद सागर से हम को भी देदो हो तृप्ती हमारी
हे दीनबन्धु शरण हूँ तुम्हारी …….
O Deenbandhu I am your refuge,
take our news
Believe that the mistake has happened with us, I have forgotten you,
Forgive us for not knowing the difference of your stranger,
After all, I have remembered you in sorrow, Murari.
O Deenbandhu I am your refuge…
You have hugged someone who is unhappy,
Sitting on his lap, patted his tears a little bit,
Seeing the Sindhu of Karuna here too, when I am sad,
Hey Deenbandhu…
We have heard that Kanha is not the sum of your digging,
Go where we are Kanha but you are not Thor,
Give us two drops from the ocean, may your satisfaction be ours
O Deenbandhu, I am your refuge.