हम है मंजिल से बिछड़े मुसाफिर साई तुम हम को रस्ता दिखा दो,
चल रही है हवाएं मुखालिफ अपने दामन की ठंडी हवा दो,
हम है मंजिल से बिछड़े मुसाफिर…..
आज भी ना समज है हज़ारो आज भी लोग भटके हुए है,
भूल कर साई रिश्ते की शक्ति मोह माया में लटके हुए है,
इनको अपना बनाने की खातिर आ के पानी से दीपक जला दो,
चल रही है हवाएं मुखालिफ अपने दामन की ठंडी हवा दो,
हम है मंजिल से बिछड़े मुसाफिर…..
तुमने चकी में गेहू को पिसा शिरडी वालो को दुःख से बचाया,
आज भी है जरूरत तुम्हारी हम को मिलती रहे साई छाया,
हम पे विपदा के आने से पहले अपनी रक्षा की सीमा बड़ा दो,
चल रही है हवाएं मुखालिफ अपने दामन की ठंडी हवा दो,
हम है मंजिल से बिछड़े मुसाफिर…..
रात दिन नाम लेकर तुम्हारा देखते है तुम्हारे ही सपने,
लाये है हम तुम्हारी शरण में मन के अच्छे बुरे कर्म अपने
चल रही है हवाएं मुखालिफ अपने दामन की ठंडी हवा दो,
हम है मंजिल से बिछड़े मुसाफिर…..
We are the passengers separated from the destination, Sai you show us the way,
Against the wind blowing, give the cool air of your arm,
We are the passengers separated from the floor…..
Even today there is no understanding, thousands of people are still astray,
Forgetting the power of Sai relationship is hanging in the illusion.
Come and light a lamp with water to make them yours.
Against the wind blowing, give the cool air of your arm,
We are the passengers separated from the floor…..
You crushed wheat in Chaki and saved the people of Shirdi from sorrow,
Even today we need you to keep on getting Sai Chhaya,
Before the calamity comes upon us, increase the limits of your defense,
Against the wind blowing, give the cool air of your arm,
We are the passengers separated from the floor…..
Night and day you see your name by name, your own dreams,
We have brought good and bad deeds of the mind under your shelter.
Against the wind blowing, give the cool air of your arm,
We are the passengers separated from the floor…..